उत्तर प्रदेश: उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर में होली के अवसर पर हर साल एक अनोखी परंपरा निभाई जाती है। इस दौरान शहर की कई मस्जिदों और मजारों को तिरपाल या काली पन्नी से ढक दिया जाता है। प्रशासन के अनुसार, यह एक पुरानी परंपरा है, जिसे हर साल निभाया जाता है।
मस्जिदों और मजारों को ढकने की परंपरा
होली के दिन शाहजहांपुर में ऐतिहासिक लाट साहब का जुलूस निकाला जाता है। इस जुलूस का मार्ग करीब 10 किलोमीटर लंबा होता है, जिसमें विभिन्न क्षेत्रों से होकर यह गुजरता है। इस दौरान यह जुलूस कई मस्जिदों और मजारों के पास से होकर निकलता है। रंग और गुलाल से धार्मिक स्थलों को बचाने के लिए स्थानीय लोग और प्रशासन मिलकर उन्हें तिरपाल से ढक देते हैं। पुलिस प्रशासन का कहना है कि यह वर्षों पुरानी परंपरा है और इसे शांति व्यवस्था बनाए रखने के लिए हर साल दोहराया जाता है।
शाहजहांपुर के पुलिस अधीक्षक (एसपी) राजेश एस ने बताया कि पीस कमेटी की बैठक में इस पर चर्चा हुई और हर साल की तरह इस बार भी वही नियम लागू किए गए हैं। पूरे शहर में कानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए पर्याप्त सुरक्षा बल तैनात किया गया है।
कौन थे लाट साहब
लाट साहब नाम का यह जुलूस ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ विरोध का प्रतीक है। यह परंपरा अंग्रेजों के शासनकाल से चली आ रही है, जब एक क्रूर ब्रिटिश अफसर के खिलाफ जनता का गुस्सा इस अनोखे तरीके से प्रकट किया गया था। इस जुलूस में एक युवक को लाट साहब के रूप में चुना जाता है, जिसका चेहरा ढका जाता है। उसे जूते-चप्पलों की माला पहनाकर बैलगाड़ी पर बैठाया जाता है और शहर के विभिन्न मार्गों से घुमाया जाता है। इस दौरान लोग उस पर अबीर-गुलाल और कभी-कभी जूते-चप्पल भी फेंकते हैं।
शाहजहांपुर में लाट साहब के दो जुलूस निकलते हैं छोटे लाट साहब और बड़े लाट साहब। छोटे लाट साहब का जुलूस सरायकाईयां मोहल्ले से शुरू होकर विभिन्न रास्तों से होकर वापस पुलिस चौकी पर समाप्त होता है। यह परंपरा आज भी जारी है और हर साल इसे पूरे उत्साह और अनुशासन के साथ मनाया जाता है।
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