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महाकुंभ 2025: संगम स्नान करने पहुंचा कपल, खाने की तलाश में मिल गया कुछ ऐसा, हो गए मालामाल

प्रयागराज में संगम स्नान के लिए आए गाजीपुर तहसील के छोटे से गांव मोहाव निवासी सतीश गुप्ता और उनकी पत्नी शैला की ज़िंदगी बदल गई. सतीश गुप्ता अपनी पत्नी के साथ संगम स्नान के बाद भोजन की तलाश कर रहे थे। जैसे ही पहली रोटी बनी, दुकान के बाहर कुछ लोग आकर भोजन मांगने लगे। फिर आगे क्या हुआ आइए जानते है.

Mahakumbh 2025, Prayagraj couple
inkhbar News
  • Last Updated: February 25, 2025 09:27:11 IST

लखनऊ: प्रयागराज में संगम स्नान के लिए आए गाजीपुर तहसील के छोटे से गांव मोहाव निवासी सतीश गुप्ता और उनकी पत्नी शैला की ज़िंदगी बदल गई. लेकिन संगम स्नान के बाद ऐसा क्या हुआ आइए जानते है. बता दें सतीश गुप्ता अपनी पत्नी के साथ संगम स्नान के बाद भोजन की तलाश कर रहे थे। इसी दौरान उन्होंने सुना कि उनके बहन-बहनोई की दुकान मीडिया सेंटर के पास है। वहां पहुंचने पर बहन ने उन्हें रोटी और सब्जी बनाने के लिए सामग्री दी। जैसे ही पहली रोटी बनी, दुकान के बाहर कुछ लोग आकर भोजन मांगने लगे। पहले कुछ लोगों को भोजन दिया गया, लेकिन धीरे-धीरे भीड़ इतनी बढ़ गई कि पूरा भोजन समाप्त हो गया।

कैसे हुए मालामाल

इतनी मांग को देखते हुए सतीश के बहनोई ने उन्हें यहीं पर ठहरकर भोजन बेचने का सुझाव दिया। विचार सही लगा और अगले ही दिन उन्होंने एक ठेले का प्रबंध कर लिया। धीरे-धीरे उनकी दुकान चल पड़ी और अब वे प्रतिदिन 15-20 हजार रुपये की कमाई कर रहे हैं। इस सफलता की खबर सुनकर उनका छोटा बेटा पंकज भी प्रयागराज पहुंच गया और काम में हाथ बंटाने लगा। शैला बताती हैं कि वे अक्सर काम करते-करते थक जाते हैं, लेकिन ग्राहकों की भीड़ खत्म नहीं होती।

रसोइये से बने बिजनेसमैन

सतीश गुप्ता पहले विशेष आयोजनों में लोगों के घर जाकर भोजन बनाने का काम करते थे। इस अनुभव के चलते उन्हें इस व्यवसाय को संभालने में कोई परेशानी नहीं हुई। वह कहते हैं, “प्रयागराज महाराज ने हमारी झोली भर दी।” 52 वर्षीय शैला और 54 वर्षीय सतीश के पांच बच्चे हैं, जिनमें से दो बेटियों की शादी हो चुकी है।

रोटी बनाने की कला

रोजगार को लेकर चिंतित रहने वाले युवाओं के लिए शैला का संदेश है कि किसी भी काम को छोटा या बड़ा नहीं समझना चाहिए। वह कहती हैं, “मैं एक गृहिणी हूं, लेकिन रोटी बनाने की कला ही मेरा स्टार्टअप बन गई। रोजगार के लिए पैसों से ज्यादा सोच और इच्छाशक्ति की जरूरत होती है।” अब यह दंपति अपने गांव लौटकर इस काम को आगे बढ़ाने की योजना बना रहा है। महाकुंभ में उनकी तरह कई लोग छोटे-छोटे व्यवसायों के जरिए आत्मनिर्भर बन रहे हैं, जो रोजगार के नए अवसरों की मिसाल पेश कर रहे हैं।

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