प्रयागराज: अमृत कुंभ से अमृत छलकने की पुराणों में कई कथाएं जानने को मिलती हैं, लेकिन सबसे प्रसिद्ध कथा सागर मंथन की है। इस कथा के अनुसार, देवताओं और असुरों के बीच अमृत प्राप्त करने के लिए सागर मंथन का आयोजन किया गया। भगवान विष्णु के सुझाव पर दोनों पक्ष सहमत हुए और मंथन प्रारंभ हुआ। हालांकि इस प्रक्रिया में कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा।

महादेव बने संसार के रक्षक

मंथन की शुरुआत के साथ ही सागर से सबसे पहले हलाहल नामक विष निकला, जो संपूर्ण सृष्टि को नष्ट करने की शक्ति रखता था। तब महादेव ने संसार की रक्षा के लिए इसे अपने कंठ में धारण कर लिया, जिससे उनका कंठ नीला हो गया और वे नीलकंठ कहलाए। इसके बाद मंथन से एक-एक करके कई रत्न निकले, जिनका बंटवारा कर दिया गया।

प्रकट हुए धन्वंतरि देव

कई महीनों के अथक परिश्रम के बाद भी सभी की दृष्टि अमृत की प्रतीक्षा में लगी हुई थी। अंततः सागर से एक तेज प्रकाश प्रकट हुआ और धन्वंतरि देव प्रकट हुए। उनके हाथ में एक दिव्य कुंभ था, जिसमें अमृत भरा हुआ था। अमृत कुंभ को देखकर देवता और असुर दोनों ही उसे प्राप्त करने के लिए लालायित हो उठे।

कैसे हुई महाकुंभ की शुरुआत

दैत्य राहु ने धन्वंतरि से अमृत छीनने की कोशिश की, लेकिन उसी समय इंद्र का पुत्र जयंत कौवे का रूप लेकर अमृत कुंभ को लेकर आकाश में उड़ गया। असुर और देवता, दोनों ही उसके पीछे भागे। इस छीना-झपटी के दौरान अमृत की कुछ बूंदें पृथ्वी पर चार स्थानों पर गिरीं हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन और नासिक। इसी के साथ हरिद्वार में गंगा तट, प्रयागराज में गंगा-यमुना-सरस्वती के संगम, उज्जैन में क्षिप्रा नदी और नासिक में गोदावरी नदी में अमृत के गिरने से ये स्थान पवित्र तीर्थ बन गए। इन स्थानों पर कुंभ और महाकुंभ का आयोजन होता है, जहां लाखों श्रद्धालु स्नान कर मोक्ष की प्राप्ति का विश्वास रखते हैं।

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