लखनऊ: महाकुंभ में 28 जनवरी की रात भगदड़ मचने से कई श्रद्धालुओं की मौत हो गई. इस हादसे में बिहार के भी लोग भी शामिल थे, जो राज्य के अलग- अलग इलाको जैसे गोपालगंज, औरंगाबाद, पटना, मुजफ्फरपुर, सुपौल, बांका और पश्चिमी चंपारण से डुबकी लगाने मेले में पहुंचे थे। हालांकि इस घटना के कई परिवारों में मातम पसरा हुआ है. वहीं हादसे से बचकर लौटी महिलाएं उस रात के हादसे के बाद अभी भी डरी हुई है.
पटना के मनेर गांव की सिया देवी की मौत के बाद पूरे परिवार में दुख का माहौल है। उनके साथ कुंभ में मौजूद बहू रिंकू भी वापस लौटी हैं लेकिन गहरे सदमे में हैं। उन्होंने बताया, “हम संगम घाट जा रहे थे, तभी भीड़ बेकाबू हो गई। मैं किसी तरह बाहर निकल आई लेकिन मेरी सास की जान चली गई। अब दोबारा कभी कुंभ नहीं जाऊंगी।” वहीं सविता देवी के बेटे का कहना है कि उनकी मां किसी तरह जिंदा वापस आई हैं, “यह किसी पुनर्जन्म से कम नहीं। अब हम कभी उन्हें किसी मेले में नहीं जाने देंगे।”
गांव की ही 70 वर्षीय जानकी देवी की हालत अब भी नाजुक बनी हुई है। भगदड़ में बुरी तरह घायल हुई जानकी देवी को कई इंजेक्शन देने के बाद होश आया, लेकिन वह अब भी शारीरिक और मानसिक पीड़ा से जूझ रही हैं। उनके शरीर पर गहरे घावों के निशान हैं और थोड़ा भी हिलने पर वह दर्द से कराह उठती हैं। इसी तरह महाकुंभ में बाल-बाल बची चंद्रा देवी, अनीता देवी और सविता देवी ने हादसे के भयावह मंजर को याद करते हुए बताया कि जब भगदड़ मची तो लोगों की चीखें गूंज रही थीं। अनीता देवी ने कहा,”लोग बोल रहे थे कि कुंभ में स्नान से मोक्ष मिलता है, इसलिए हम भी गए थे। लेकिन वहां जो हुआ, वह भुलाया नहीं जा सकता।”
चंद्रा देवी ने प्रशासन पर गुस्सा जाहिर करते हुए कहा, “ऐसा लग रहा था मानो लाशों के ऊपर दौड़ हो रही थी। जो जितना मजबूत था, वह कमजोरों को कुचलता जा रहा था। प्रशासन को इस आपदा से निपटने के लिए पहले से तैयारी करनी चाहिए थी।” इस घटना के बाद महाकुंभ में की गई व्यवस्था पर सवाल उठाए जा रहे है, इसके साथ ही राजनितिक पार्टियों के बीच भी इस हादसे को लेकर बहस जारी है.
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