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शव को खाने वाले अघोरी बाबाओं का कैसे होता है अंतिम संस्कार, जानकर उड़ जाएंगे होश

महाकुंभ 2025 का दूसरा दिन अमृत स्नान के साथ जारी है। सुबह से ही संगम के घाटों पर श्रद्धालुओं की भारी भीड़ जुटी हुई है. इस बीच महाकुंभ में अघोरी बाबाओं और नागा साधुओं की उपस्थिति भी देखने को मिल रही हैं। अघोरी साधु भगवान शिव के परम भक्त होते हैं और उनका जीवन पूरी तरह तपस्या और साधना को समर्पित होता है।

Aghori Baba last rites, Maha Kumbh 2025
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  • Last Updated: January 14, 2025 11:00:00 IST

प्रयागराज: महाकुंभ 2025 का दूसरा दिन अमृत स्नान के साथ जारी है। सुबह से ही संगम के घाटों पर श्रद्धालुओं की भारी भीड़ जुटी हुई है. इस बीच महाकुंभ में अघोरी बाबाओं और नागा साधुओं की उपस्थिति भी देखने को मिल रही हैं। लेकिन क्या आप जानते है शव को खाने वाले अघोरी बाबाओं के अंतिम संस्कार की प्रक्रिया क्या है और यह कितने दिनों तक चलती है?

नहीं जलाया जाता अघोरियों का शव

अघोरी साधु भगवान शिव के परम भक्त होते हैं और उनका जीवन पूरी तरह तपस्या और साधना को समर्पित होता है। मान्यताओं के अनुसार, अघोरी बाबाओं की मृत्यु के बाद उसने शव को जलाया नहीं जाता। बता दें शव को उल्टा रखकर सवा माह तक प्रतीक्षा की जाती है ताकि शरीर में कीड़े पड़ सकें। इसके बाद, शव को गंगा में प्रवाहित कर दिया जाता है, जबकि सिर (मुंडी) को रखकर 40 दिन की विशेष साधना की जाती है। कहा जाता है कि इस दौरान मुंडी को शराब चढ़ाई जाती है, जिसके बाद वह हिलने लगती है। यह प्रक्रिया अघोरी साधु की साधना और तांत्रिक शक्ति का प्रतीक मानी जाती है।

कैसा होता हैं अघोरियों का रहन-सहन

अघोरियों की जीवनशैली आम लोगों से बिल्कुल अलग होती है। वे श्मशान में रहकर साधना करना पसंद करते हैं, क्योंकि इसे शीघ्र फलदायी माना गया है। अघोरी साधु मांसाहारी होते हैं और विशेष रूप से मानव मांस का सेवन करते हैं, लेकिन वे गाय का मांस नहीं खाते। वहीं अघोरियों की लाल आंखें और गंभीर व्यक्तित्व उन्हें रहस्यमय बनाते हैं। हालांकि, उनकी आंखों की लालिमा उनके क्रोध का प्रतीक नहीं, बल्कि साधना और तपस्या का प्रभाव मानी जाती है। अघोरी साधु अपने हठधर्मी स्वभाव के लिए जाने जाते हैं और अपने लक्ष्यों को पूरा करने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं।

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