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रास्ता भटकने वाले अंतरिक्ष यात्रियों के लिए NASA ने चांद पर भेजा GPS, जानें कैसे ट्रैक होगी लोकेशन

अंतिरक्ष में मार्ग भटकने वाले अंतरिक्ष यात्रियों के लिए नासा ने एक नई तकनीक का इस्तेमाल किया है। नासा ने पहली बार चांद पर GPS का इस्तेमाल किया। नासा ने कहा कि इन रिजल्ट का अर्थ यह है कि आर्टेमिस मिशन इन संकेतों का फायदा उठा सकते हैं, जिससे वे अपनी स्थिति, गति और समय का सटीक पता लगा सकते हैं।

Nasa, GPS, Moon
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  • Last Updated: March 6, 2025 12:54:58 IST

नई दिल्ली: अंतिरक्ष में मार्ग भटकने वाले अंतरिक्ष यात्रियों के लिए नासा ने एक नई तकनीक का इस्तेमाल किया है। नासा ने पहली बार चांद पर GPS का इस्तेमाल किया। इसका मतलब है कि पहली बार ग्लोबल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम (GNSS) से सिग्नल प्राप्त किए गए है, जिससे चंद्रमा पर ट्रैक किया गया। यह उपलब्धि नासा और इतालवी अंतरिक्ष एजेंसी ने 3 मार्च को हासिल की है।

इसके क्या है फायदे

लूनर जीएनएसएस रिसीवर एक्सपेरीमेंट (लूजीआरई) ने जीपीएस सिग्नल प्राप्त किए और उन पर नजर रखी है। नासा ने कहा कि इन रिजल्ट का अर्थ यह है कि आर्टेमिस मिशन इन संकेतों का फायदा उठा सकते हैं, जिससे वे अपनी स्थिति, गति और समय का सटीक पता लगा सकते हैं। GNSS सिग्नल रेडियो वेव्स का इस्तेमाल करके स्थिति, नेविगेशन और समय के बारे में जानकारी को ट्रांसफर कर सकते हैं।

कैसे शुरू हुआ ऑपरेशन

दुनिया भर की सरकारों द्वारा GPS, गैलीलियो, बेईडू और GLONASS समेत कई GNSS तारामंडल प्रदान किए गए हैं। लूग्रे को फायरफ्लाई एयरोस्पेस के ब्लू घोस्ट चंद्र लैंडर को चंद्रमा पर ले जाया गया, जो 2 मार्च को चंद्रमा पर उतरा था। लूग्रे उन 10 नासा पेलोड में से एक था, जिसे ब्लू घोस्ट ने चंद्रमा पर पहुंचाया था। लैंडिंग के तुरंत बाद, मैरीलैंड के ग्रीनबेल्ट में नासा के गोडार्ड स्पेस फ्लाइट सेंटर में लूग्रे पेलोड ऑपरेटरों ने चंद्र सतह पर अपना पहला विज्ञान ऑपरेशन शुरू किया।

लूग्रे ने पृथ्वी से लगभग 2.25 लाख मील दूर नेविगेशन को प्राप्त किया। यह तकनीक 14 दिनों तक लगातार काम करती रहेगी, जिससे GNSS के मील के पत्थर स्थापित होंगे। लूग्रे चांद पर विकसित किया गया पहला इतालवी अंतरिक्ष एजेंसी का हार्डवेयर भी है, जो संगठन के लिए एक मील का पत्थर है।

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