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Electoral Bond Case Explained: राजनीतिक पार्टी के चंदे के स्त्रोत की गोपनीयता है जरूरी- भारत सरकार

नई दिल्ली: इलेक्टोरल बॉन्ड(Electoral Bond) मामले पर सुप्रीम कोर्ट में 1 नवंबर को दूसरे दिन की सुनवाई हई। इस दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता कोर्ट में केंद्र सरकार के तरफ से इलेक्टोरल बॉन्ड का बचाव किए। तुषार मेहता ने इलेक्टोरल बॉन्ड के पक्ष में यह दलील दी कि राजनीतिक पार्टियों के चंदे के स्त्रोत को […]

Electoral Bond Case explained: राजनीतिक पार्टी के चंदे के स्त्रोत की गोपनीयता है जरूरी- भारत सरकार
inkhbar News
  • Last Updated: November 1, 2023 21:03:26 IST

नई दिल्ली: इलेक्टोरल बॉन्ड(Electoral Bond) मामले पर सुप्रीम कोर्ट में 1 नवंबर को दूसरे दिन की सुनवाई हई। इस दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता कोर्ट में केंद्र सरकार के तरफ से इलेक्टोरल बॉन्ड का बचाव किए। तुषार मेहता ने इलेक्टोरल बॉन्ड के पक्ष में यह दलील दी कि राजनीतिक पार्टियों के चंदे के स्त्रोत को गोपनीय रखना दानदाताओं के लिए हितकारी है।

तुषार मेहता ने कहा कि इलेक्टोरल बॉन्ड से राजनीतिक चंदे के प्रोसेस में पारदर्शिता आई है। पहले नकद में चंदा दिया जाता था। उन्होंने कहा कि राजनीतिक पार्टियों को मिल रही डोनेशन की गोपनीयता की व्यवस्था दानदाताओं के हित में रखी गई है।

बता दें कि इस मामले पर सुनवाई कल यानी 2 नवंबर को भी जारी रहेगी।

सॉलिसिटर जनरल की दलीलें

चंदे की गोपनीयता के पीछे का कारण बताते हुए तुषार मेहता ने आगे कहा कि राजनीतिक पार्टी को चंदा देने वाले भी गोपनीयता चाहते हैं। चंदे को अगर पब्लिक किया गया तो दूसरी पार्टी के लोग उनसे नाराज हो सकते हैं। साथ ही मेहता ने यह भी कहा कि सत्ताधारी पार्टी को ज्यादा पैसे मिलना कोई नई बात नहीं है। पहले भी ऐसा होता रहा है। साल 2004 से 14 के बीच भी यही हुआ था।

कब शुरु हुई सुनवाई?

मंगलवार, 31 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट में पांच जजों की संविधान पीठ ने राजनीतिक फंडिंग से जुड़ी इलेक्टोरल बॉन्ड योजना को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई शुरू की है। जानें कि सुप्रीम कोर्ट ने अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमनी से इस मामले में अपनी राय देने को कहा था, जिसपर सुनवाई के एक दिन पहले वेंकटरमनी ने कहा कि किसी राजनीतिक दल को मिलने वाले चंदे की जानकारी पाना नागरिकों का फंडामेंटल राईट नहीं है।

पहले दिन की सुनवाई में क्या हुआ?

31 अक्टूबर को हुई मामले की पहली सुनवाई में एडीआर का पक्ष रख रहे प्रशांत भूषण ने कोर्ट में कहा कि इलेक्टोरल बॉन्ड(Electoral Bond) लोकतंत्र के लिए सही नहीं है। इसकी वजह से पता नहीं चल पाता कि किस पार्टी को कितना चंदा मिला।

क्या है इलेक्टोरल बॉन्ड?

इलेक्टोरल बॉन्ड या चुनावी बॉन्ड राजनीतिक दलों और दानकर्ताओं के लिए एक साधन के रूप में काम करता है। इसमें दान करने वाले का परिचय गोपनीय रखा जाता है। बता दें कि इस प्रणाली को 2017 में एक वित्त विधेयक के माध्यम से पेश किया गया और 2018 में लागू कर दिया गया था।

क्या है पूरा मामला?

एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) की एक हालिया रिपोर्ट ने भारत में राजनीतिक दलों के लिए चुनावी बॉन्ड(Electoral Bond) की महत्ता पर प्रकाश डाला है। इस रिपोर्ट में राजनीतिक पार्टियों को पिछले कुछ सालों में इलेक्टोरल बॉन्ड से मिले चंदे बताए गए हैं। इसमें यह भी बताया गया है कि चुनावी बॉन्ड से सबसे अधिक दान, कुल ₹3,438.8237 करोड़, आम चुनाव के वर्ष 2019-20 में मिला था। वहीं सभी राजनीतिक दलों को 2021-22 तक कुल 9,188 करोड़ रुपये का चंदा मिला। इसमें बीजेपी के हिस्से में 57 प्रतिशत से अधिक चंदा आया जबकि कांग्रेस की झोली में केवल 10 प्रतिशत आया है।

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एडीआर की रिपोर्ट के मुताबिक, विश्लेषण किए गए 31 राजनीतिक दलों द्वारा प्राप्त ₹16,437.635 करोड़ के कुल दान में से 55.90% चुनावी बांड से, 28.07% कॉर्पोरेट फील्ड से और 16.03% अन्य स्रोतों से आया है।