Ayatollah Ali Khamenei: इजरायल-ईरान जंग में इजरायल की जीत के बीच रोड़ा बनकर खड़ा एकमात्र शख्स अयातुल्ला अली खामेनेई खड़ा है। जिसके बारे में आज हम इस आर्टिकल में जानेंगे। आपको जानकारी के लिए बता दें कि, साल 1939 में ईरान के मशहद शहर में ईरान के सुप्रीम लीडर अयातुल्ला अली खामेनेई का जन्म हुआ। धार्मिक माहौल में पले-बढ़े खामेनेई ने अपनी शुरुआती शिक्षा मशहद में ही हासिल की, लेकिन उनकी असली पहचान पवित्र शहर कोम में बनी, जहां वे इस्लामिक क्रांति के भावी नेता अयातुल्ला रूहुल्लाह खुमैनी के शिष्य बने।
खोमैनी की शिक्षाओं से प्रभावित होकर युवा खामेनेई ईरान के वर्तमान शाह पहलवी के निरंकुश शासन के खिलाफ मुखर आवाज बन गए। उनकी क्रांतिकारी आवाज ने उन्हें कई बार जेल की सलाखों के पीछे पहुंचाया, लेकिन हर बार वे और मजबूत होकर उभरे। अपनी जुझारू भावना से उन्होंने धीरे-धीरे ईरान के लोगों के बीच गहरी पैठ बना ली। साल 1979 में ईरान में इस्लामी क्रांति की लहर में अयातुल्ला अली खामेनेई सबसे महत्वपूर्ण चेहरों में से एक थे। वे खोमैनी के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े हुए और ईरान के शाह ‘मोहम्मद रजा पहलवी’ के खिलाफ लाखों लोगों को सड़कों पर ले आए। 1979 में जब इस्लामी क्रांति सफल हुई, तो खामेनेई ने नवगठित ‘इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ ईरान’ में कई महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां संभालीं, जिनमें इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स (आईआरजीसी) के गठन में उनकी भूमिका खास थी।
अक्टूबर 1981 में अयातुल्ला अली खामेनेई ईरान के राष्ट्रपति चुने गए। उन्होंने ईरान-इराक युद्ध के कठिन दौर में देश का नेतृत्व किया और राष्ट्र को एकजुट रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। फिर उसके बाद 1989 में इस्लामी क्रांति के जनक और ईरान के पहले सुप्रीम लीडर अयातुल्ला रूहोल्लाह खुमैनी का निधन हो गया। खुमैनी की इच्छा और तत्कालीन राजनीतिक परिस्थितियों को देखते हुए अयातुल्ला अली खामेनेई को सर्वसम्मति से ईरान का दूसरा सुप्रीम लीडर चुना गया। आपको बता दें कि, यह पद ईरान में सबसे बड़ा धार्मिक, राजनीतिक और सैन्य अधिकार रखता है।