नई दिल्ली। अंग्रेजों के चंगुल से भारत दो टुकड़ों में बंटकर आजाद हुआ। 15 अगस्त 1947 को भारत मां का बंटवारा हुआ और धर्म के नाम पर एक अलग मुल्क अस्तित्व में आया। मोहम्मद अली जिन्ना पाकिस्तान के पितामह माने गए। मुस्लिमों के लिए बने पाकिस्तान ने तब वादा किया था कि वो धार्मिक अल्पसंख्यकों को भी पूरा अधिकार देंगे। लेकिन इतने सालों बाद भी कोई गैर मुस्लिम वहां का राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री नहीं बन सका है। आइये जानते हैं कि क्यों आज तक कोई गैर-मुस्लिम सर्वोच्च पद तक नहीं पहुंच पाया है।

क्या कहता है पाकिस्तान का संविधान

भारत का संविधान 26 जनवरी 1950 को लागू हो गया था। भारत धार्मिक न होकर एक सेक्युलर राष्ट्र बना लेकिन पाकिस्तान ने इस्लाम और शरीयत को अपनाया। वहां सरकार चलाने के लिए विधि-व्यवस्था लागू करने में समय लगा। पाकिस्तान में साल 1973 में संविधान लागू हुआ। इसमें स्पष्ट रूप से लिखा हुआ है कि एक मुस्लिम ही यहां का प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति बन सकता है।

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जिन्ना के भी नहीं हुए पाकिस्तानी

पाकिस्तान के संविधान के अनुच्छेद 41(2) में लिखा हुआ है कि कोई भी व्यक्ति राष्ट्रपति बनने के लिए तब तक योग्य नहीं होगा जब तक वह मुसलमान न हो। इसी तरह अनुच्छेद 91(3) के अनुसार देश का प्रधानमंत्री केवल नेशनल असेंबली का मुस्लिम सदस्य ही बन सकता है। इसका मतलब हुआ कि पाकिस्तान में कोई हिंदू या गैर धर्म के लोग प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति नहीं बन सकते हैं। हालांकि पाकिस्तान के संस्थापक जिन्ना ने 11 अगस्त 1947 को अपने भाषण में कहा था कि धर्म यहां के नागरिकों के अधिकारों को तय नहीं करेगा। परन्तु अब उच्च पद पर जाने के लिए इस्लामिक पहचान जरूरी है।

 

 

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