US vs Russia Fighter Jets: क्या आप कभी कल्पना कर सकते थे कि दुनिया के सबसे घातक F-22 स्टील्थ फाइटर जेट को मिग-29 और मिग-21 फाइटर जेट के बीच उड़ते देखेगें? लेकिन अब ये हो चुका है। F-22 स्टील्थ फाइटर अमेरिका का पांचवीं पीढ़ी का फाइटर जेट है, इसलिए सवाल उठ रहे हैं कि आखिर ये रूसी मिग विमानों के साथ क्या कर रहे थे? क्या हो रहा है? हाल ही में जारी एक वीडियो में अमेरिकी वायुसेना की उस सीक्रेट यूनिट की झलक दिखाई गई है, जिसका नाम ‘रेड ईगल्स’ है। इस दौरान अमेरिकी वायुसेना अपने पायलटों को सोवियत लड़ाकू विमानों से लड़ने की ट्रेनिंग दे रही थी।
सोवियत काल के ये दोनों फाइटर जेट अमेरिका के सीक्रेट ट्रेनिंग प्रोजेक्ट का हिस्सा रहे हैं। इनके जरिए अमेरिका ने अपनी थल, वायु और नौसेना को ट्रेनिंग दी है। अमेरिकी वायुसेना के सीक्रेट 4477वें ट्रेनिंग प्रोग्राम को ‘रेड ईगल्स’ नाम दिया गया था। इस स्क्वाड्रन में 1980 के दशक में मिग-17 “फ्रेस्को”, मिग-21 “फिशबेड” और मिग-23 “फ्लॉगर” विमान शामिल थे, जिन्हें अमेरिकी खुफिया सेवाओं ने खरीदा था। रेड ईगल्स के पायलटों ने न केवल सोवियत रणनीति का इस्तेमाल किया, बल्कि संघर्ष के दौरान उन्हीं दुर्जेय मिग श्रृंखला के लड़ाकू विमानों को भी उड़ाया, जिनका उन्होंने सामना किया था।
यह दुर्लभ वीडियो अमेरिकी अरबपति और पायलट जेरेड इसाकमैन ने सोशल मीडिया पर शेयर किया है। जिसमें उन्होंने खुलासा किया कि वे खुद मिग-29UB उड़ा रहे थे। वीडियो में सबसे आगे मिग-21 उड़ता हुआ दिखाई दे रहा है, जबकि उसके पीछे दो F-22 रैप्टर और एक मिग-29 फाइटर जेट है। इसाकमैन ने लिखा कि “अगर आपको एक खूबसूरत विकर्षण की ज़रूरत है … और मुझे वास्तव में इसकी ज़रूरत थी .. तो मैं इसे शेयर कर रहा हूँ। यहाँ पिछले साल का एक वीडियो है … कर्नल ‘ईविल’ पेक के लिए स्मारक फ्लाईओवर। आप शायद फिर कभी ऐसा फॉर्मेशन न देखें।” उन्होंने 4477वें टेस्ट एंड इवैल्यूएशन स्क्वाड्रन या “रेड ईगल्स” के पहले कमांडर कर्नल गेल ‘ईविल’ पेक को श्रद्धांजलि देने के लिए यह उड़ान भरी।
If you need a distraction..and I do..I just found out we can share this from last year. A memorial flyover for Col. ‘Evil’ Peck, first commander of the secretive Red Eagles. Mig-21 leading, I was flying the Mig-29 along w/F-22s. You will never see a formation like this again. pic.twitter.com/8ifY1ffvk1
— Jared Isaacman (@rookisaacman) June 8, 2025
नवभारत की रिपोर्ट के मुताबिक शीत युद्ध के दौरान जब अमेरिका और तत्कालीन सोवियत संघ युद्ध के बेहद करीब थे, तब अमेरिका ने प्रोजेक्ट कॉन्स्टेंट पेग नाम से एक गुप्त मिशन चलाया था। इसका मकसद दुश्मन की ताकत को जानना और उसे अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करना था। सोवियत संघ के पास उस समय घातक मिग-17, मिग-21 और मिग-23 जैसे लड़ाकू विमान थे और अमेरिका का मकसद इन विमानों की क्षमता को जानना था। इसीलिए अमेरिका ने इन लड़ाकू विमानों को भेदने के लिए अपनी खुद की यूनिट ‘रेड ईगल्स’ बनाई थी।
4477वीं टेस्ट एंड इवैल्यूएशन स्क्वाड्रन यानी रेड ईगल्स अमेरिकी वायुसेना, नौसेना और मरीन कॉर्प्स के पायलटों को असली डॉगफाइट ट्रेनिंग देती थी, वो भी दुश्मन के असली लड़ाकू विमानों के खिलाफ। इस तरह की ट्रेनिंग से पायलटों को दुश्मन के विमानों के बारे में पहले से जानकारी होती थी और वे युद्ध के मैदान में अचानक दुश्मन के विमानों को देखकर घबराते नहीं थे।
कर्नल गेल ‘एविल’ पेक ने इस मिशन की योजना बनाई थी। वियतनाम युद्ध में लड़ चुके कर्नल गेल पेक ने खुद मिग-17 और मिग-21 लड़ाकू विमान उड़ाए और अमेरिकी वायुसेना के पायलटों को बताया कि इन विमानों की क्षमताएं और कमजोरियां क्या हैं। प्रोजेक्ट कॉन्स्टेंट पेग की शुरुआत 1977 में हुई थी और इसे 1988 में खत्म कर दिया गया, जब सोवियत संघ का विघटन हुआ और शीत युद्ध की शुरुआत हुई।
रूसी लड़ाकू विमान शीत युद्ध के समय से ही अमेरिका के लिए आकर्षण का केंद्र रहे हैं। उस समय अमेरिका और रूस के अलावा किसी और देश के पास उन्नत लड़ाकू विमान नहीं थे। दशकों तक अमेरिकी सेना और खुफिया एजेंसियों ने दुनिया भर में कब्जा की गई सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइलों से लेकर गिरे हुए अंतरिक्ष यान के टुकड़ों और रूसी लड़ाकू विमानों के मलबे तक को अपने कब्जे में लेने की कोशिश की है। 1966 में एक इराकी पायलट मुनीर रेडफा ने इजरायल में मिग-21 जेट उतारा था। जिसके बाद इजरायल ने इसे अपने कब्जे में ले लिया और इसका अध्ययन करने के बाद इसे अमेरिका को भेज दिया। अमेरिका में इसे YF-110 नाम दिया गया और प्रोजेक्ट हैव डोनट के तहत इस पर गहन अध्ययन किया गया।
जबकि मिग-23 लड़ाकू विमान अमेरिका को मिस्र ने दिए थे, जिसने 1970 के दशक के आखिर में खुद को सोवियत गठबंधन से अलग कर लिया था। इन विमानों को C-5 विमान पर लादकर अमेरिका लाया गया और प्रोजेक्ट हैव पैड के तहत रूसी लड़ाकू विमानों का गहन अध्ययन किया गया। मिग-29, जो उस समय सोवियत संघ का सबसे उन्नत लड़ाकू विमान था और जिसमें उन्नत तकनीक का इस्तेमाल किया गया था, उसे अमेरिका ने मोल्दोवा से खरीदा था। सोवियत संघ के पतन के बाद मोल्दोवा एक बहुत गरीब देश बन गया और उसके पास मिग-29 थे। अमेरिका को डर था कि ईरान इन विमानों को खरीद सकता है, इसलिए उसने मोल्दोवा को भारी मात्रा में फंड दिया और मिग-29 खरीदे।