US Military Power: 7 मई 2025 को शुरू हुए ‘ऑपरेशन सिंदूर’ में भारतीय सेना ने पाकिस्तान और PoK में नौ आतंकी ठिकानों पर सटीक हमले कर आतंकवाद की कमर तोड़ दी. इस ऑपरेशन ने न केवल पाकिस्तान को हिलाकर रख दिया बल्कि अमेरिका की अरबों डॉलर की रक्षा कंपनियों में भी खलबली मचा दी. भारत की स्वदेशी तकनीक और कम लागत वाले हथियारों ने वैश्विक मंच पर अपनी ऐसी धाक जमाई कि दुनिया भर में चर्चे हो रही है. अमेरिकी विशेषज्ञों ने अपने रक्षा तंत्र में सुधार की तत्काल जरूरत बताई है. Small Wars Journal में जॉन स्पेंसर और विन्सेंट वॉयला ने लिखा “2014 में शुरू हुआ मेक इन इंडिया अभियान 10 साल बाद ऑपरेशन सिंदूर में रंग लाया. जिसकी पूरी दुनिया साक्षी है.”
भारत ने रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की दिशा में तेजी से कदम बढ़ाए हैं. मेक इन इंडिया के तहत स्वदेशी हथियारों का निर्माण न केवल लागत को कम कर रहा है बल्कि नवाचार को भी बढ़ावा दे रहा है. उदाहरण के लिए भारत का पिनाका रॉकेट सिस्टम, जिसकी कीमत 56,000 डॉलर से भी कम है. अमेरिका के GMLRS मिसाइल (1,48,000 डॉलर) के मुकाबले कहीं अधिक किफायती है. इसी तरह भारत का आकाशतीर मिसाइल डिफेंस सिस्टम, जिसकी डील भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (BEL) के साथ 1,982 करोड़ रुपये में हुई. अमेरिका के NASAMS (3,842 करोड़ रुपये) या पैट्रियट सिस्टम की तुलना में कई गुना सस्ता है. ऑपरेशन सिंदूर में आकाशतीर की सफलता ने भारत की तकनीकी क्षमता को ऐसा साबित किया कि दुनिया दांतों तले उंगली दबाये बैठी है.
स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (SIPRI) के अनुसार दुनिया की 20 सबसे बड़ी रक्षा कंपनियों में 9 अमेरिकी हैं. जिनमें लॉकहीड मार्टिन, बोइंग, नॉर्थरॉप ग्रुम्मन, रेथियॉन टेक्नोलॉजीज (RTX) और जनरल डायनामिक्स शामिल हैं. 2023 में इन कंपनियों ने 318 अरब डॉलर का राजस्व अर्जित किया. जो वैश्विक रक्षा राजस्व का आधे से अधिक है. अमेरिका की रक्षा अधिग्रहण प्रक्रिया धीमी और पुरानी है. विशेषज्ञों का कहना है कि अमेरिका कोल्ड वॉर की पुरानी रणनीतियों में फंसा हुआ है जहां आधुनिकीकरण में दशकों लग जाते हैं. इसका सबसे बड़ा उदाहरण F-35 प्रोग्राम है जिसकी लागत 1.7 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंच चुकी है और खराब प्रदर्शन के लिए इसकी बार-बार आलोचना हुई है. अमेरिकी वायुसेना के सचिव फ्रैंक केंडल ने स्वीकार किया “F-35 प्रोग्राम एक बड़ी भूल थी. जिसे दोहराया नहीं जाएगा.”
भारत का मेक इन इंडिया अभियान रक्षा क्षेत्र में क्रांति ला रहा है. Small Wars Journal के अनुसार भारत ने न केवल कम लागत वाले हथियार विकसित किए, बल्कि ड्रोन, मिसाइल सिस्टम और साइबर तकनीक जैसे क्षेत्रों में भी तेजी से नवाचार किया. ऑपरेशन सिंदूर में भारत की स्वदेशी तकनीकों ने यह साबित किया कि वह महंगे पश्चिमी हथियारों का विकल्प पेश कर सकता है. उदाहरण के लिए ईरान के शाहेद-136 ड्रोन (20,000 डॉलर) की तुलना में अमेरिका का MQ-9 रीपर ड्रोन 30 मिलियन डॉलर से अधिक का है. भारत की यह रणनीति न केवल लागत प्रभावी है बल्कि वैश्विक रक्षा बाजार में उसकी स्थिति को मजबूत कर रही है.
ऑपरेशन सिंदूर ने अमेरिकी रक्षा कंपनियों को झटका दिया है. एक्स पर चर्चा के अनुसार भारत की मारक क्षमता से अमेरिका को यह डर सता रहा कि उसके महंगे हथियार अप्रासंगिक हो सकते हैं. लॉकहीड मार्टिन, बोइंग और RTX जैसी कंपनियों को अब भारत जैसे उभरते रक्षा हब से प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ रहा है. विशेषज्ञों का मानना है कि अमेरिका की धीमी अधिग्रहण प्रक्रिया और लागत-आधारित कॉन्ट्रैक्ट्स (cost-plus contracts) नवाचार को रोक रहे हैं. भारत की तुलना में अमेरिका के रक्षा तंत्र में जोखिम लेने की कमी और अत्यधिक लागत ने उसे कमजोर स्थिति में ला खड़ा किया है.
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