नई दिल्ली : अमेरिका के नए राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और उनकी टीम ने सोमवार को शपथ लेते ही काम शुरू कर दिया है और माना जा रहा है कि करीब एक दर्जन कार्यकारी आदेशों पर पर तुरंत हस्ताक्षर करेंगे । यूक्रेन में युद्ध को समाप्त करना उनकी शीर्ष प्राथमिकताओं में से एक है और अब डोनाल्ड ट्रंप के सामने 100 दिनों के भीतर युद्ध को रोकने की चुनौती है। हाल के दिनों में जिस तरह से इस्लामिक देशों ने फैसले किये हैं उन पर भी ट्रंप का कहर बरप सकता है।
साल 2016 में चुनाव जीतने के बाद ट्रंप ने अपने शुरुआती चुनिंदा आदेशों में से एक में कुछ मुस्लिम बहुल देशों के लोगों पर यात्रा प्रतिबंध लगाने की घोषणा की थी। इन देशों में सीरिया, लीबिया, यमन और सूडान जैसे देशों के नाम शामिल थे। ट्रंप द्वारा लगाए गए इस प्रतिबंध को तब अदालत में चुनौती दी गई थी। आखिरकार राष्ट्रपति जो बाइडेन ने प्रतिबंध के नियमों को कमजोर कर दिया।
डोनाल्ड ट्रंप ने अपने नए कार्यकाल में उक्त प्रतिबंध को फिर से लागू करने की बात कही है। इतना ही नहीं, उन्होंने इन देशों से शरणार्थियों के आने पर भी रोक लगाने का वादा किया है। अभी यह स्पष्ट नहीं है कि ट्रंप भविष्य में किन मुस्लिम देशों पर इस तरह का यात्रा प्रतिबंध लगाएंगे, जानकारों का मानना है कि पश्चिम एशिया के कई देश इसके दायरे में आ सकते हैं।
डोनाल्ड ट्रंप अपने नए कार्यकाल में भी पहले की तरह ही वैश्विक पर्यावरण नियमों से अमेरिका को अलग कर सकते हैं। इसके लिए उन्होंने पेरिस जलवायु समझौते से अलग होने के संकेत पहले ही दे दिए हैं। माना जा रहा है कि ट्रंप कार्बन उत्सर्जन के प्रभावों की परवाह किए बिना ऊर्जा उत्पादन बढ़ाने के लिए जीवाश्म ईंधन के इस्तेमाल को बढ़ाने पर एक बार फिर जोर दे सकते हैं।
ऊर्जा उत्पादन के मुद्दे पर ट्रंप के लक्ष्य का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि नवंबर में चुनाव जीतने के ठीक बाद उन्होंने घोषणा की थी कि जलवायु परिवर्तन को कोरी कल्पना मानने वाले क्रिस राइट को उनकी सरकार में ऊर्जा मंत्री बनाया जा रहा है। बताया जाता है कि ट्रंप ने उन्हें सरकारी कामकाज में लालफीताशाही कम करने और जीवाश्म ईंधन में निवेश बढ़ाने की जिम्मेदारी सौंपी है।
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