नई दिल्ली: चूहों की बढ़ती आबादी अब भारत तक सीमित नहीं है, बल्कि यह वैश्विक समस्या बन गई है। हाल ही में प्रकाशित एक अध्ययन में यह बात सामने आई है कि जलवायु परिवर्तन के कारण दुनिया भर के प्रमुख शहरों में चूहों की संख्या में तेजी से वृद्धि हो रही है। इससे न केवल हमारे दैनिक जीवन पर असर पड़ रहा है, बल्कि स्वास्थ्य संकट भी पैदा हो रहा है।
साइंस एडवांसेज जर्नल में प्रकाशित शोध के अनुसार, चूहों की आबादी में वृद्धि का सीधा संबंध जलवायु परिवर्तन से है। खासकर बढ़ते तापमान, शहरीकरण और भोजन की उपलब्धता ने चूहों को इन शहरों में अधिक पनपने के लिए आदर्श वातावरण दिया है। इस शोध में यह बात सामने आई है कि चूहों की दो प्रमुख प्रजातियां रैटस नॉर्वेजिकस और रैटस, जो वैश्विक स्तर पर फैली हुई हैं, मानव स्वास्थ्य के लिए खतरा पैदा कर रही हैं, क्योंकि इन्हें 50 से अधिक जूनोटिक बीमारियों का वाहक माना जाता है।
शोध में शामिल अमेरिका के 16 प्रमुख शहरों में से 11 में चूहों की संख्या में बड़ी वृद्धि देखी गई है। यह वृद्धि न्यूयॉर्क और एम्स्टर्डम में सबसे अधिक थी, जबकि टोक्यो और लुइसविले जैसे कुछ शहरों में चूहों की आबादी में कमी देखी गई। शोध में कहा गया है कि तापमान में वृद्धि, घनी आबादी वाले शहर और हरियाली की कमी जैसी परिस्थितियाँ चूहों की संख्या में वृद्धि को बढ़ावा दे रही हैं।
अध्ययन में कहा गया है कि अधिकांश छोटे स्तनधारियों की तरह, चूहों की गतिविधियाँ भी ठंडे तापमान में कम हो जाती हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि जब तापमान कम होता है, तो चूहों को लंबे समय तक आश्रय में रहना पड़ता है। उदाहरण के लिए, न्यूयॉर्क शहर में, चूहों की आबादी गर्मियों के अंत में चरम पर थी और सर्दियों के दौरान कम हो गई। अध्ययन में उल्लेख किया गया है कि चूहों की संख्या में सबसे अधिक वृद्धि कम वनस्पति वाले शहरों में देखी गई, जो भोजन और आवास की उपलब्धता से संबंधित हो सकती है।
इन चूहों के कारण कृषि उपज और खाद्य आपूर्ति का नुकसान अकेले अमेरिका में लगभग 27 बिलियन डॉलर होने का अनुमान है। इसके साथ ही, इन चूहों के कारण कई तरह की बीमारियाँ भी फैलती हैं। अध्ययन में कहा गया है कि इससे जुड़ी बीमारियों में लेप्टोस्पायरोसिस, हंटावायरस पल्मोनरी सिंड्रोम, म्यूरिन टाइफस और ब्यूबोनिक प्लेग आदि शामिल हैं। जिससे जन स्वास्थ्य पर गंभीर असर पड़ रहा है। चूहों की संख्या को नियंत्रित करने के लिए हर साल 500 मिलियन डॉलर खर्च किए जाते हैं।
शोध में इस बात पर जोर दिया गया है कि इस मुद्दे से निपटने के लिए वैश्विक स्तर पर सामूहिक प्रयासों की बहुत जरूरत है। इस अध्ययन के प्रमुख शोधकर्ता जोनाथन रिचर्डसन और उनके सहयोगियों का मानना है कि चूहों की आबादी को नियंत्रित करने के लिए आक्रामक रणनीतियों की जरूरत है। इसमें कचरा प्रबंधन और साफ-सफाई को प्राथमिकता देना महत्वपूर्ण कदम हो सकते हैं, ताकि हम इस बढ़ती समस्या से निपट सकें।
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