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अफगानिस्तान में तालिबान ने मानवाधिकार संस्थानों को किया बंद, चौतरफा हो रहा विरोध

नई दिल्ली। तालिबान के सत्ता में आने के बाद से अफगानिस्तान में हालात दिन-ब-दिन बिगड़ते जा रहे हैं। अफगानिस्तान जहां आर्थिक संकट से जूझ रहा है तो दूसरी तरफ अब वहां के लोग मानवीय संकट से जूझते दिख रहे हैं। इसलिए अफगानिस्तान में मानवाधिकारों की गंभीर स्थिति के बीच, तालिबान सरकार ने बहुत कुछ उलट […]

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  • Last Updated: May 17, 2022 17:26:26 IST

नई दिल्ली। तालिबान के सत्ता में आने के बाद से अफगानिस्तान में हालात दिन-ब-दिन बिगड़ते जा रहे हैं। अफगानिस्तान जहां आर्थिक संकट से जूझ रहा है तो दूसरी तरफ अब वहां के लोग मानवीय संकट से जूझते दिख रहे हैं। इसलिए अफगानिस्तान में मानवाधिकारों की गंभीर स्थिति के बीच, तालिबान सरकार ने बहुत कुछ उलट दिया है। पूरे देश में अशांति है और तालिबान ने अफगानिस्तान में मानवाधिकार संस्थानों को बंद कर दिया है।

तालिबान को सत्ता में आए लगभग दस महीने हो चुके हैं, लेकिन देश में अभी भी सब कुछ बिखरा हुआ है। लड़कियों की शिक्षा को लेकर तालिबान का रवैया आज तक ठीक नहीं रहा है।अफगानिस्तान में लड़कियां आज भी डर के साए में जी रही हैं, वे पुरुषों की मदद के बिना बाहर नहीं निकल सकतीं। साथ ही देश की मीडिया से आजादी भी छीन ली गई है। ऐसे में देश में तालिबान के मानवाधिकार आयोग का भंग होना बड़ी चिंता का विषय है।

फैसले की चौतरफा हो रही निंदा

तालिबान सरकार के इस फैसले की मानवाधिकार कार्यकर्ताओं द्वारा निंदा की जा रही है। कार्यकर्ताओं ने कहा कि तालिबान द्वारा मानवाधिकार संस्थानों को नष्ट करना सही नहीं था, जो न्याय की मांग के लिए बहुत महत्वपूर्ण था। ह्यूमन राइट्स वॉच की एसोसिएट महिला अधिकार निदेशक और पूर्व वरिष्ठ अफ़ग़ानिस्तान शोधकर्ता हीथर बर्र ने कहा, “आइए, एक ऐसे अफ़ग़ानिस्तान को याद करें, जिसमें मानवाधिकार आयोग था।” यह सही नहीं था, यह संस्था कभी प्रत्यक्ष नहीं थी। लेकिन इसका मतलब है कहीं जाना, मदद मांगना और न्याय मांगना। उन्होंने आगे कहा कि राष्ट्रीय मानवाधिकार संस्थानों के वैश्विक गठबंधन में अप्रैल में 120 सदस्य देश थे, लेकिन अब उन्हें अफगानिस्तान से हटने की आवश्यकता होगी।

जी7 देशों ने की फैसले की अलोचना

पिछले हफ्ते, जी 7 के विदेश मंत्रियों ने अफगानिस्तान में महिलाओं और लड़कियों की स्थिति पर कहा, ‘हम, कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान, यूनाइटेड किंगडम और यूएसए के G7 विदेश मंत्री और यूरोपीय संघ के उच्च प्रतिनिधि ने अपना कड़ा विरोध व्यक्त किया और अधिकारों पर बढ़ते प्रतिबंधों पर खेद व्यक्त किया।

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