Donald Trump Nobel Prize : राष्ट्रपति बनने के बाद से ही डोनाल्ड ट्रंप पुरी दुनिया में शांति दूत बनकर घूम रहे हैं। पहले रूस-यूक्रेन जंग फिर भारत-पाक संघर्ष और अब इजरायल-ईरान युद्ध में चौधरी बनने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन ट्रंप सफल अभी तक कहीं पर भी नहीं हो पाए। रूस-यूक्रेन जंग अभी भी चालु है।

वहीं भारत-पाक के भीच मध्यस्थता को पीएम मोदी ने नकार दिया। इसके अलावा इजरायल-ईरान में भी कोई पीछे हटते हुए नहीं दिख रहा है।

इसके बाद भी ट्रंप हथियार बनाते हुए खुद को नोबेल पुरस्कार का दावेदार घोषित कर दिया है. और शिकायत भी की है उन्हें नोबल मिलना चाहिए था लेकिन नहीं मिल रहा है। इस हसरत को पूरा करने के लिए वह बेताब हो रहे हैं। इसके अलावा वो पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा से बड़ा बनने की कोशिश कर रहे हैं।

पूर्व राष्ट्रपति ओबामा से बड़ा नेता बनना चाहते हैं ट्रंप?

बता दें कि साल 2009 में जब अमेरिका के पहले अश्वेत राष्ट्रपति बराक ओबामा को नोबेल शांति पुरस्कार मिला था। अब लग रहा है कि तब से ही ट्रंप के भीतर एक कसक घर कर गई है। ट्रंप इस सम्मान को अपनी विरासत का हिस्सा बनाना चाहते हैं। कुछ उसी तरह जैसे ओबामा की विरासत में ओसामा बिन लादेन की मौत दर्ज है।

शुरूआत से ही ट्रंप का राजनीतिक सफर हमेशा से ही “मैं सबसे महान बनना चाहता हूं” के नजरिए से भरा रहा है। लेकिन ओबामा जैसा नोबेल पाना इतना आसान नहीं है। ट्रंप के लिए यह एक ऐसा मुकाम है जिसे वे फिलहाल हासिल नहीं कर पाए हैं। कई मौकों पर ट्रंप ने सार्वजनिक रूप से यह सवाल उठाया है कि “मुझे नोबेल क्यों नहीं मिला?” उन्होंने साल 2020 और 2025 में भी ऐसा बयान दिया था।

2020 में ट्रंप को किया गया था नामांकित

जानकारी के लिए बता दें कि साल 2020 में ट्रंप को मध्य पूर्व में इजरायल और अरब देशों के बीच ऐतिहासिक अब्राहम समझौते के लिए नोबेल पुरस्कार के लिए नामित किया गया था। लेकिन जब उन्हें पुरस्कार नहीं मिला तो उन्होंने गुस्से में कहा, “मुझे नोबेल नहीं मिलता, मीडिया में इसका जिक्र भी नहीं होता।” यह उनकी दिली इच्छा थी। शायद एक लालसा और एक अधूरी इच्छा उनके मुंह से निकल गई।

अल-बगदादी को मारकर ट्रंप के लिए ट्रनिंग पॉइंट?

ओबामा ने लादेन को मारकर ‘हीरोइक मोमेंट’ बनाया। ट्रंप ने भी इसी राह पर चलते हुए 2019 में ISIS के सरगना अबू बकर अल-बगदादी पर एक बड़ा सैन्य ऑपरेशन किया। ट्रंप ने इस ऑपरेशन को दुनिया के सामने बहुत बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया। ट्रंप ने इस ऑपरेशन को नोबेल पुरस्कार पाने के एक तरीके के तौर पर देखा। उन्होंने इस ऑपरेशन के जरिए अपनी खुद की छवि बनाने की भी कोशिश की। उन्होंने इस मौके के जरिए ओबामा की बराबरी करने की कोशिश की। लेकिन ऐसा नहीं हो सका।

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