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जिंदगी ना मिलेगी दोबारा: समाज के लिए मिसाल कायम करने वालों को इंडिया न्यूज़ का सम्मान

आपके पसंदीदा और भरोसेमंद न्यूज चैनल इंडिया न्जूज़ ने सोमवार को दिल्ली के सिरिफोर्ट ऑर्डिटोरियम में उन लोगों को सम्मानित किया जिन्होंने अपनी लगन और मेहनत के बूते फर्श से अर्श तक का सफर तय किया.

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  • Last Updated: September 11, 2017 17:02:52 IST
नई दिल्ली: आपके पसंदीदा और भरोसेमंद न्यूज चैनल इंडिया न्जूज़ ने सोमवार को दिल्ली के सिरिफोर्ट ऑर्डिटोरियम में उन लोगों को सम्मानित किया जिन्होंने अपनी लगन और मेहनत के बूते फर्श से अर्श तक का सफर तय किया.
 
इंडिया न्यूज़ ने कार्यक्रम जिंदगी ना मिलेगी दोबारा के जरिए समाज के उन लोगों का सम्मान किया जिन्होंने काटों भरी राह पर चलते हुए समाज के लिए एक मिसाल कायम की. आइए आपको उन लोगों के बारे में बताते हैं जिन्हें इंडिया न्यूज़ के कार्यक्रम जिंदगी ना मिलेगी दोबारा के जरिए सम्मानित किया गया. 
 
कल्पना सरोज, चेयरपर्सन, कमानी ट्यूब्स
कल्पना सरोज ने संघर्ष की राह पर चलते हुए शून्य से शिखर तक का सफर तय किया. कल्पना सरोज की जिंदगी में एक वक्त ऐसा भी आया जब गरीबी, बाल विवाह, घरेलू हिंसा और सामाजिक शोषण से तंग आकर उन्होंने जान देने की कोशिश की लेकिन फिर उन्होंने जिंदगी जीने के हौसले को फिर से सहेजा. इसके बाद वो मायानगरी कही जाने वाली मुंबई आ गईं, जहां दो रुपये रोजाना के वेतन पर नौकरी की. उन्होंने सिलाई का काम किया. धीरे-धीरे कल्पना सरोज सिलाई, बुटीक, फर्नीचर शोरुम, और बिल्डिंग कंस्ट्रक्शन का काम करते हुए आगे बढीं और फिर कमानी ट्यूब्स की चेयरपर्सन बन गईं. कल्पना सरोज आज हजारों करोड़ की मालकिन हैं. भारत सरकार ने कल्पना सरोज को पद्मश्री सम्मान से भी नवाजा है. 
         
सुपर 30 के संस्थापक प्रोफेसर आनंद कुमार 
अब तक हजारों बच्चों का जीवन बदल चुके प्रोफेसर आनंद कुमार को शायद ही आज बिहार का कोई नौजवान ना जानता हो. प्रोफेसर कुमार ने गरीबी को बेहद करीब से देखा है. साथ ही गरीबी के कारण दम तोड़ती प्रतिभाओं को भी देखा है. शायद यही वजह रही है प्रोफेसर आनंद कुमार ने संसाधनों के अभाव में दम तोड़ते टैलेंट को संजीवनी देने का बीड़ा उठाया. पिता की मौत के बाद प्रोफेसर आनंद कुमार अपनी मां के हाथ से बने पापड़ बेचकर घर का ख्रर्चा चलाते थे और साथ ही पढ़ाई भी करते थे. उन्हें कैंम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में दाखिला मिल रहा था लेकिन गरीबी की वजह से वो कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में दाखिला नहीं ले सके. इसके बाद सफर शुरू हुआ सुपर-30 का, जहां प्रोफेसर कुमार हर साल बिहार के 30 प्रतिभाशाली गरीब बच्चों को निशुल्क IIT JEE Entrance Exam की कोचिंग देते हैं. प्रोफेसर आनंद कुमार के पढ़ाए हुए लगभग 90 से 95 फीसदी बच्चे हर साल IIT JEE Entrance Exam क्लियर करते हैं. 
 
 
सुशील कुमार, पहलवान
कुश्ती के प्रति पहलवान सुशील कुमार बचपन से ही जुनूनी थे. उन्होंने महज 14 साल की उम्र में ही कुश्ती की प्रैक्टिस शुरू कर दी थी. उनका सिर्फ और सिर्फ एक ही सपना था ओलंपिक में भारत के लिए मेडल जीतना. साल 2010 में वर्ल्ड टाइटल जीतकर सुशील कुमार ने देश का सिर गर्व से उंचा कर दिया. इसके बाद लंदन ओलंपिक में सिल्वर और फिर बीजिंग ओलंपिक में ब्रांज मैडल जीतकर सुशील कुमार दो इंडिविजुअल ओलंपिक मेडल जीतने वाले पहले भारतीय रेसलर बने. भारत सरकार ने सुशील कुमार को राजीव गांधी खेल रत्न और पदमश्री सम्मान से नवाजा है.
 
तान्या सचदेव, शतरंज खिलाड़ी
मेहनत और लगन पक्की हो तो छोटी उम्र में भी बड़ा मुकाम हासिल किया जा सकता है, इस बात की जीती-जागती मिसाल हैं तान्या सचदेव, जिन्होंने महज आठ साल की उम्र में शतरंज में पहला इंटरनेशनल टाइटल जीतकर इतिहास रच दिया. तान्या 2005 में ग्रेंड मास्टर बनने वाली भारत की आठवीं महिला खिलाडी बनीं. इसके अलावा साल 2007 में वुमेंन एशियन चैस चैपियनशिप जीतकर तान्या शतरंज क्वीन बन गईं. साल 2008 में तान्या ने इंटरनेशनल मास्टर का खिताब अपने नाम दर्ज किया. शतरंज में उत्कृष्ठ प्रदर्शन करने वाली तान्या सचदेव को 2009 में भारत सरकार ने अर्जुन अवॉर्ड से सम्मानित किया. 
 
मेजर देवेंद्र पाल सिंह, कारगिल हीरो
मौत को मात देने वाले मेजर देवेंद्र पाल सिंह ने साबित किया है कि अगर इंसान में जीने की जिद हो तो मौत को भी मात दी जा सकती है. कारगिल युद्ध के दौरान मेडर देवेंद्र पाल सिंह मोर्चे पर तैनात थे कि तभी दुश्मन के तोप का एक गोला उनके बेहद करीब आकर फटा जिसमें मेजर देवेंद्र बुरी तरह घायल हो गए. इलाज के दौरान डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया लेकिन फिर जैसे चमत्कार हुआ और उनकी सांसें फिर से चलने लगीं. ऑपरेशन के दौरान मेजर देवेंद्र को बचाने के लिए डॉक्टरों को उनकी एक टांग काटनी पड़ी. टांग कटने पर भी  मेजर देवेंद्र के हौंसले कम नहीं हुए, पहले बैसाखी और फिर कृत्रिम पैरों के सहारे उन्होंने दौड़ना शुरु किया और अब तक वो 20 हाफ मैराथन में हिस्सा ले चुके हैं. मेजर देवेंद्र के इसी जज्बे की वजह से आज उन्हें ब्लेड रनर के नाम से भी जाना जाता है. 
 
पलक मुच्छल, गायिका
बॉलीवुड को एक के बाद एक कई हिट गाने देने वाली गायिका पलक मुच्छल की जिदंगी का दूसरा पहलू ये भी है कि वो और उनके भाई पलाश मुच्छल देश-विदेश में सार्वजनिक मंचों पर गाने गाकर हृद्य रोग से पीड़ित बच्चों के लिए चंदा इकट्ठा करते हैं. समाज सेवा के लिए उनके योगदान को देखते हुए उनका नाम गिनीज बुक ऑफ रिकॉर्ड्स और लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में भी दर्ज है. पलक ने एक था टाइगर और आशिकी-2 फिल्म के लिए गाने गाए हैं जो काफी पॉपुलर रहे हैं. 
 
महाशय धर्मपाल गुलाटी, संस्थापक, एमडीएच मसाले
शायद आपको ये नाम जाना पहचाना ना लगे लेकिन जैसे ही हम एमडीएच मसालों का नाम लेंगे तो आपको एक बुढ़ा शख्स नजर आएगा जिसके सिर पर पगड़ी है और वो मसालों का विज्ञापन कर रहा है. जी हां, यही हैं महाशय धर्मपाल गुलाटी जो बिजनेसमैन होने के साथ साथ समाजसेवी भी हैं. महाशय जी के नाम से जाने जाने वाले धर्मपाल गुटाली का जन्म पाकिस्तान के सियालकोट में 1922 को हुआ था. बंटवारे के बाद उनका परिवार दिल्ली आ गया और फिर उन्होंने मसाले का काम शुरू किया और आज एमडीएच मसाले देश ही नहीं बल्कि दुनिया में मसालों के लिए जाना जाता है. 

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