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अखिलेश-शिवपाल में सुलह करवा रहे थे मुलायम ‘रेफरी’ या बॉक्सिंग ?

लखनऊ में आज मुलायम सिंह यादव ने जो कुछ किया-कराया, उससे समाजवादी पार्टी के धुरंधरों को भी नहीं समझ में आया कि नेताजी अपने बेटे और भाई के बीच सुलह कराने के लिए पंचायत कर रहे थे या दोनों के बीच बॉक्सिंग करा रहे थे?

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  • Last Updated: October 24, 2016 11:00:04 IST
लखनऊ. समाजवादी पार्टी और मुलायम सिंह यादव के परिवार का ड्रामा गज़ब मोड़ पर है. क्या होगा, पता नहीं और क्या हो रहा है, ये भी पता नहीं.
 
लखनऊ में आज पार्टी के विधायकों और सांसदों की मीटिंग में मुलायम सिंह यादव ने जो कुछ किया-कराया, उससे समाजवादी पार्टी के धुरंधरों को भी नहीं समझ में आया कि नेताजी अपने बेटे और भाई के बीच सुलह कराने के लिए पंचायत कर रहे थे या दोनों के बीच बॉक्सिंग करा रहे थे?
 
अखिलेश के तेवर तीखे क्यों हुए ?
 
लखनऊ के पार्टी दफ्तर में मीटिंग से पहले ही अखिलेश समर्थकों के तेवर साफ थे. दफ्तर के बाहर ‘अखिलेश यादव जिंदाबाद’ के नारे लग रहे थे. शिवपाल के समर्थकों को अखिलेशवादियों ने घेर रखा था.
 
 
दफ्तर के अंदर अखिलेश यादव नेताजी उर्फ पिताजी के सामने फुल फॉर्म में थे. उन्होंने दीपक सिंघल और गायत्री प्रजापति के बारे में खुलासा किया कि वो फैसला नेताजी का था.
 
अखिलेश यादव ने सीधे-सीधे नाम लेकर चाचा शिवपाल और अमर सिंह को सारे फसाद की जड़ बताया. इस दौरान अखिलेश यादव के समर्थकों की नारेबाज़ी और तालियां भी गूंजती रहीं.
 
नेताजी का अमर-प्रेमः मतलब क्या है ?
 
अखिलेश के बाद बारी आई शिवपाल की, तो उन्होंने अमर सिंह की खुली पैरवी शुरू कर दी. बकौल शिवपाल, ‘यहां जो लोग उछल रहे हैं, वो अमर सिंह के पैरों की धूल के बराबर भी नहीं हैं.’ थोड़ी बाद जब मुलायम शुरू हुए, तो उन्होंने शिवपाल का संघर्ष और अमर सिंह का एहसान एक साथ गिनाया.
 
 
नेताजी बोले, ‘अमर सिंह मेरे भाई हैं. अमर सिंह ने मुझे जेल जाने से बचाया.’ मीटिंग में अखिलेश समर्थकों की आवाज़ ज्यादा गूंज रही थी. लिहाज़ा नेताजी ने अखिलेश को औकात याद दिलाते हुए कहा- ‘कुर्सी मिलते ही तुम्हारा दिमाग खराब हो गया.’
 
सस्पेंस, इमोशन, एक्शन, ड्रामा…ट्रेजडी किसकी ?
 
जून 2016 से सतह पर आए समाजवादी परिवार के इस ड्रामे में पहले सस्पेंस था कि अखिलेश का पलड़ा भारी है या शिवपाल का? फिर इसमें अखिलेश का इमोशनल इंटरव्यू सामने आया, जिसमें उन्होंने कहा था कि वो तो इतने बड़े परिवार में बचपन से ही अकेले हैं.
 
 
फिर चिट्ठियों के जरिए एक्शन शुरू हुआ. अखिलेश के बाल सखा उदयवीर सिंह ने चिट्ठी लिखी, चाचा रामगोपाल ने चिट्ठी लिखी. रविवार को डायरेक्ट एक्शन शुरू हो गया. अखिलेश ने अमर सिंह के करीबियों का कैबिनेट से बर्खास्त करना शुरू किया, जिसमें पहला नाम ही शिवपाल यादव का था.
 
फिर मुलायम ने रामगोपाल को पार्टी से बाहर निकाला और इसका एलान शिवपाल से कराया. यानी फुल ड्रामा, जिसमें ट्रेजडी किसके साथ होने वाली है, इसका इंतज़ार सबको है.
 
अब क्या करेंगे अखिलेश ?
 
लखनऊ में पार्टी के सांसदों और विधायकों की मीटिंग में कोई फैसला नहीं हुआ. सुलह कराने के लिए नेताजी ने अखिलेश और शिवपाल का मंच पर मिलाप कराया, लेकिन अगले ही पल माइक पर दोनों के बीच छीना-झपटी हो गई.
 
 
अखिलेश ने पिता का अमर-प्रेम देखने-सुनने के बाद भी जब अमर सिंह पर अखबार में स्टोरी प्लांट कराने की बात शुरू की, तो शिवपाल ने माइक झपटते हुए कहा- ‘झूठ क्यों बोलते हो.’ अखिलेश मीटिंग से बाहर निकल गए और शिवपाल भी.
 
 
ये संवाद जिस मोड़ पर खत्म हुआ, उसके बाद अब सवाल सिर्फ इतना है कि अखिलेश अब क्या करेंगे? मुख्यमंत्री पद छोड़ेंगे या कठपुतली बनकर सरकार चलाएंगे? क्योंकि नेताजी ने तो साफ कर दिया है कि शिवपाल उनके सगे भाई हैं और अमर सिंह भाई जैसे.
 
क्या अलग पार्टी बनाएंगे अखिलेश?
 
अखिलेश यादव ने मीटिंग की शुरुआत में ही कह दिया कि वो क्यों नई पार्टी बनाएंगे? लेकिन शिवपाल ने साफ-साफ कहा कि अखिलेश ने उनके सामने कहा था कि वो अपनी अलग पार्टी बना लेंगे और जिससे चाहेंगे, गठबंधन करके चुनाव लड़ेंगे.
 
 
अब मौजूदा हालात में इतना तो साफ है कि अगर अखिलेश ने शिवपाल और अमर सिंह का दबदबा मंजूर कर लिया, तो उनकी अपनी छवि हालात के आगे सरेंडर करने वाले नेता की बन जाएगी.
 
 
अब उनके सामने दो ही विकल्प हैं, या तो समाजवादी पार्टी में अपनी पकड़ साबित करें और दो तिहाई विधायकों-सांसदों के बूते खुद को असली समाजवादी पार्टी का नेता साबित कर दें या फिर नई पार्टी बनाकर पार्टी और परिवार के उन लोगों के सर्वमान्य नेता बन जाएं, जो शिवपाल और अमर सिंह को फूटी आंख भी पसंद नहीं करते.

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