Inkhabar
  • होम
  • मनोरंजन
  • भंसाली पर हमले की वजह बनीं रानी पद्मावती का असल सच क्या है ?

भंसाली पर हमले की वजह बनीं रानी पद्मावती का असल सच क्या है ?

फिल्म पद्मावती के डायरेक्टर संजय लीला भंसाली के साथ शुक्रवार को मारपीट की गई है. भंसाली पर इतिहास से छेड़छाड़ का आरोप लगा. लेकिन भंसाली पर लगे इस आरोप में कितनी सच्चाई है? पढ़िए ये हमारी खास रिपोर्ट...

Padmavati, History of Queen Padmavati, Real Truth of Queen Padmavati, Chittor Queen Padmavati, Chittor Fort, Malik Muhammad Jayasi, Sanjay Leela Bhansali, rajput karni sena, Sanjay bhansali assaulted, Jaipur
inkhbar News
  • Last Updated: January 28, 2017 10:21:11 IST
नई दिल्ली. फिल्म पद्मावती के डायरेक्टर संजय लीला भंसाली के साथ शुक्रवार को मारपीट की गई है. भंसाली पर इतिहास से छेड़छाड़ का आरोप लगा. लेकिन भंसाली पर लगे इस आरोप में कितनी सच्चाई है? पढ़िए ये हमारी खास रिपोर्ट…
बोलहु सुआ पियारे-नाहाँ, मोरे रूप कोइ जग माहाँ .
सुमिरि रूप पद्मावती केरा, हँसा सुआ, रानी मुख हेरा..
 
 
मलिक मोहम्मद जायसी के नागमती-सुवा-संवाद-खंड की अवधी में ये लाइनें हैं, जिसमें रानी नागमती अपने नए तोते से पूछ रही हैं कि क्या इस दुनियां में मुझसे सुंदर कोई महिला है, तब तोता पदमिनी या पद्मावती की सुंदरता को याद करते हुए हंसता है. इस तरह रानी पदमिनी की कहानियों से भरा पड़ा है उस दौर का साहित्य और इसी के चलते साहित्यकारों को ही नहीं, फिल्मकारों को भी इस तरह के किरदार सहज खींचते रहे हैं कि इस पर सीरियल बनाएं या मूवी बनाएं. 2009 में सोनी पर एक सीरियल शुरू हुआ ‘;चित्तौड़ की रानी पदमिनी का जौहर’, लेकिन मंहगे सैट्स के खर्चे नहीं निकाल पाया और बंद हो गया. अब बारी संजय लीला भंसाली की है, जिनके खर्चे से ज्यादा चर्चे हो गए हैं.
 
सवाल ये है कि सच क्या है? एक इतिहासकार इरफान हबीब ने बयान दिया कि पद्मावती नाम का कोई किरदार इतिहास में था नहीं. उनके हिसाब से इतिहास वो है, जो उसी दौर में किसी ने लिखा हो और उस दौर में इतिहास कौन लिखता था, जो राजा के दरबार में रहते थे, जैसे अकबर के समय अबुल फजल, अलाउद्दीन समेत कई दिल्ली सुल्तानों के समय अमीर खुसरो. भले ही खुसरो इतिहास कम साहित्यिक कृतियां ज्यादा लिखते थे. लोग सवाल उठाते हैं कि अमीर खुसरो तो चित्तौड़ युद्ध के बारे में क्यों नहीं लिखा? इसका जवाब ये है कि जो खुसरो सिकंदर की विजयों की शान में आइन ए सिंकतरी और अलाउद्दीन की शान में ‘खजाइन उल फतह’ लिख रहे हों, यहां तक अपने भाई को अंधा कर गद्दी पर बैठने वाले अलाउद्दीन के बेटे मुबारक की शान में भी ग्रंथ लिख रहे हों वो उनके खिलाफ कैसे लिख सकते थे?
 
जी हां… ये हार थी अलाउद्दीन खिलजी की कि उसे चित्तौड़ तो मिला लेकिन रानी पदमिनी नहीं. ये हार थी अलाउद्दीन की कि उसकी वजह से दो रानियों समेत सात सौ अबलाओं ने जलती आग में कूदकर जान दे दी, खुसरो इसके बारे में लिखते वक्त अलाउद्दीन की तारीफ कैसे कर सकते थे. हां, खुसरो ने लिखा, एक पूरा ग्रंथ लिखा ‘आशिका’. अलाउद्दीन को एक रानी और पसंद आई थी कमला देवी, गुजरात के एक राजा रायकर्ण की पत्नी, उसको पाने के लिए पहले गुजरात पर हमला किया, राजा परिवार सहित भागकर देवगिरि चला गया तो देवगिरि के राजा रामकर्ण देव पर हमला कर दिया. कमला देवी को अलाउद्दीन अपनी पटरानी बनाकर ही माना, इतनी ही नहीं उसने कमला देवी की जवान बेटी देवल रानी की शादी अपने बेटे खिज्र खां से करवा देगी. इन जबरदस्ती की शादियों को अमीर खुसरो ने ‘आशिका’ में अमर प्रेम कहानी के तौर पर लिखा है, कल को फिर कोई फिल्मकार इस पर मूवी बनाएगा. इसलिए अमीर खुसरो या बाकी दरबारी इतिहासकारों का ना लिखना कोई तर्क नहीं. वैसे भी अंग्रेजी इतिहासकारों ने पूरे ब्रिटिश भारत का जब आधिकारिक इतिहास लिखा तो 1881 में इस घटना को The Imperial Gazetteer Of India में क्यों शामिल किया?
 
 
मलिक मोहम्मद जायसी ने भी ‘पदमावत’ लिखा तो शेरशाह शूरी को समर्पित करते हुए, जायसी रायबरेली के जायस नाम की जगह पैदा हुए और अमेठी के पास मर गए, शायद ही कभी चित्तोड़ जा पाए हों. लेकिन इतना तय है कि रानी पदमिनी के नाम पर चित्तौड़ फोर्ट में आज भी पानी के बीचोंबीच एक छोटा सा महल है, जो पदमिनी महल के नाम से ही जाना जाता है और नामकरण का कोई इतिहास नहीं, वैसे पदमिनी तालाब भी है वहां. जायसी ने इसे 1540 में लिखा, यानी युद्ध के 237 साल बाद. उससे पहले का कोई इतिहास मिलता नहीं और हमारे इतिहासकारों ने लोक कथाओं या लोगों के बीच स्मृतियों के आधार पर चल रही कहानियों को या स्थानीय लोगों ने जो कुछ लिखा उस पर भरोसा किया नहीं. लेकिन अब से नहीं उसी वकत से पूरे राजपूताना ही नहीं, देश भर में अलाउद्दीन के चित्तौड़ आक्रमण और रानी पदमिनी के जौहर की कहानी सुनाई जा रही है, जिसको जायसी ने ग्रंथ में पिरोया. कुछ तो सच रहा ही होगा.
 
जायसी के पदमावत के मुताबिक पद्मावती सिंहल द्वीप की राजकुमारी थी, सिंहल द्वीप यानी श्रीलंका. इस बात पर लोग भरोसा नहीं करते, लेकिन इतिहास के नजरिए से ये मुश्किल नहीं लगता क्योंकि इस युद्ध से तीन चार सौ साल पहले तक तो श्रीलंका पर भारत के चोल राजाओं की ही सत्ता रहती है, कई शासक उनके आधिपत्य में रहे. उसकी सुंदरता की कहानी सुनकर चित्तौड़ के राजा रावल रतन सिंह ने अपनी बहादुरी से स्वंयवर में उनको जीता, फिर पटरानी बनाकर ले आए.  हालांकि राजस्थानी ग्रंथों में रानी पद्मावती को रतन सिंह की पन्द्रहवीं रानी माना जाता है. पद्मावती से पहले रानी नागमती उनकी प्रमुख रानी थी.
 
चित्तोड़ के दरबार में राघव चेतन नाम का एक कलाकार रहता था, पेंटर और म्यूजिशियन था. किसी ने लिखा है कि राघव और चेतन दो भाई थे. राघव को काला जादू करने का भी शौक था, तंत्र क्रियाएं भी करता था, राजा को पता लगा तो उसने राज्य से गुस्सा होकार उसे निकाल दिया, जिसमें रानी पद्मावती की भी कोई भूमिका थी. राघव ने बदला लेने की ठानी और अलाउद्दीन खिलजी से मुलाकात की, और उसे पेंटिंग बनाकर दिखाया कि रानी पद्मावती जैसी सुंदर महिला तो उसके हरम में होनी चाहिए. अलाउद्दीन एक छोटी सेना लेकर आया और राजा पर दवाब डाला कि एक बार रानी की शक्ल दिखा दी जाए वो चला जाएगा. राजा गुस्सा हुआ तो पद्मावती ने समझाया कि दिल्ली के सुल्तान से युद्ध अगर थोड़ी सी बात से टल रहा है तो इसमें कोई हर्ज नहीं और रानी शीशे में अपना प्रतिविम्ब दिखाती है, जिसे अलाउद्दीन को पानी में देखने की इजाजत मिलती है.
 
अलाउद्दीन किले में अकेला आया था, वो उसकी खूबसूरती देख कर दंग रह जाता है. राजा जब अपने कुछ सिपाहियों के साथ उसे छोड़ने जाता है तो दोनों के बीच दोस्ताना माहौल हो जाता है, तो अचानक अलाउद्दीन का इशारा पाकर उसके सैनिक रतन सिंह के सिपाहियों पर काबू पाकर रतन सिंह को अपने डेरे में उठा ले जाते हैं. अलाउद्दीन शर्त लगाता है कि रानी को भेज दो, राजा को ले जाओ. रानी हामी भर देता है और अपने काका गोरा और 12 साल के भाई बादल की अगुवाई में सैकड़ों दासियों के साथ डोली में पहुंच जाती है, शर्त रखती है कि जाने से पहले राजा से मिलूंगी. यहां पहली बार अलाउद्दीन रानी को देखता है. हालांकि मेवाड़ के इतिहासकार लिखते हैं कि ना शीशे में रानी की परछाई थी और ना डोली में रानी थी, वो तो उसकी एक खूबसूरत दासी थी. राजा के मिलते ही अचानक डोलियों में छुपे सैकड़ों सैनिक हमला बोल देते हैं और बमुश्किल अलाउद्दीन अपने खास खास लोगों के साथ वहां से भागकर जान बचाता है. लेकिन गोरा मारा जाता है.
 
6 महीने के अंदर अलाउद्दीन बड़ी सेना लेकर वापस लौटता है, राणा रतन सिंह और बारह साल का बादल बहादुरी से लड़ते हुए मारे जाते हैं, रानी पद्मावती और रानी नागमती करीब सात सौ दासियों के साथ नहाने और पूजा करने के बाद जौहर करने के लिए अग्निकुंडों में बैठ जाती हैं. अलाउद्दीन के हाथ बस राख लगती है. पूरे राजस्थान में इस घटना की मिसाल दी जाती रही है कि इज्जत बचाने के लिए जान दे दी पद्मावती ने. अगर यही सब मूवी में दिखाया जाता है तो शायद किसी को भी परेशानी नहीं हो. लेकिन जिस तरह से बाजीराव की मुगल बादशाह पर विजय को दरकिनार कर उसे एक आशिक राजा की तरह संजय लीला भंसाली ने पेश किया था, उससे कुछ लोग नाराज थे. हालांकि बाजीराव का नाम आप जानते हैं, तो बड़ी वजह संजय लीला भंसाली ही हैं.
 
करणी सेना ने जो किया, उसका कोई भी समझदार व्यक्ति समर्थन नहीं कर सकता. लेकिन सवाल फिर भी हैं, अलाउद्दीन खिलजी का रोल रणवीर सिंह करेंगे, ऐसे में ये कैसे हो सकता है कि वो पूरी तरह से विलेन के रोल में ही हों. लोगों को लगता है कि इस मूवी के जरिए कहीं अलाउद्दीन के रोल को तो पॉजीटिव बनाने की कोशिश नहीं है, जैसे कि शाहरुख खान ने अपनी मूवी रईस के जरिए अब्दुल लतीफ के लिए किया था. मुंबई ब्लास्ट के लिए आरडीएक्स सप्लाई करने वाले गैंगस्टर की रईस में मजबूरियां दिखा दीं और उसके हाथों दाऊद को मरवा दिया. अब देश के युवा और आने वाली जनरेशंस तो इसी को सच मानेंगी. फिल्मकार की असली क्रिएटिवटी तो इसी में है कि ऐतिहासिक किरदारों की इमेज या तथ्यों को बिना तोड़े मरोड़े उसे एंटरटेनिंग भी बनाए और करोड़ों कमाए भी. विरोध करने वालों को भी याद रखना चाहिए कि यही वो संजय लीला भंसाली हैं, जिनके चलते 200 सालों से इतिहास के कूड़ेदान में डाल दिए गए वीर योद्धा बाजीराव बल्लाल भट्ट का नाम आज देश का बच्चा बच्चा जानता है.      
 

Tags