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125 साल पहले स्वामी विवेकानंद के भाषण ने बदल दिया था भारत के लिए विश्व का नजरिया

आज से ठीक 125 साल पहले स्वामी विवेकानंद ने अमेरिका में ऐसा भाषण दिया था जिसने भारत के प्रति विश्व की सोच को बदल कर रख दिया था. 11 सितंबर साल 1893 के दिन स्वामी विवेकानंद ने शिकागो में हुए विश्व धर्म सम्मेलन में भारत को लेकर जो भी बातें कही थी, उसने विश्व का नजरिया ही बदल दिया था.

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  • Last Updated: September 11, 2017 06:19:00 IST
नई दिल्ली : आज से ठीक 125 साल पहले स्वामी विवेकानंद ने अमेरिका में ऐसा भाषण दिया था जिसने भारत के प्रति विश्व की सोच को बदल कर रख दिया था. 11 सितंबर साल 1893 के दिन स्वामी विवेकानंद ने शिकागो में हुए विश्व धर्म सम्मेलन में भारत को लेकर जो भी बातें कही थी, उसने विश्व का नजरिया ही बदल दिया था.
 
125 साल पहले हुई इस ऐतिहासिक घटना ने नई सोच, धर्म को लेकर नए नजरिए को जन्म दिया था. स्वामी विवेकानंद ने सात समंदर दूर जाकर अपने स्वदेश भारत के बारे में दिल को छू लेने वाली बातें कही थीं. उन्होंने अपने भाषण की शुरुआत ‘अमेरिकावासी मेरे भाइयों और बहनों’ के संबोधन के साथ करते हुए सभी का धन्यवाद किया था.
 
स्वामी विवेकानंद ने कहा था, ‘मुझे गर्व है कि मैं ऐसे धर्म से हूं जिसने पूरे विश्व को सहिष्णुता और सार्वभौमिक स्वीकृति का पाठ पढ़ाया. हम सिर्फ सार्वभौमिक सहनशीलता में ही विश्वास नहीं रखते, बल्कि हम विश्व के सभी धर्मों को सत्य के रूप में स्वीकार करते हैं.’ उन्होंने कहा, ‘मुझे गर्व है कि मैं एक ऐसे देश से हूं, जिसने इस धरती के सभी देशों और धर्मों के परेशान और सताए गए लोगों को शरण दी.’
 
यहां पढ़ें क्या कहा था स्वामी विवेकानंद ने 125 साल पहले-
‘अमेरिका के बहनो और भाइयो, आपके जोरदार और प्यार भरे स्वागत से मेरा हृदय अपार स्नेह से भर गया है. मैं विश्व की सबसे प्राचीन संत परंपरा की तरफ से आपको धन्यवाद देता हूं. मैं आपको सभी धर्मों की जननी की तरफ से धन्यवाद देता हूं और सभी जाति, संप्रदाय के लाखों, करोड़ों हिन्दुओं की तरफ से आपका आभार व्यक्त करता हूं.’
 
‘मुझे यह गर्व है कि हमने अपने हृदय में उन इजरायलियों की पवित्र यादें संजोकर रखी हैं, जिन्होंने दक्षिण भारत में उस वर्ष शरण ली थी, जिस वर्ष उनका पवित्र मंदिर रोमनों ने तबाह कर दिया था. मुझे गर्व है कि मैं ऐसे धर्म से हूं जिसने पारसी धर्म के लोगों को भी शरण दी. जिस तरह अलग-अलग स्त्रोतों से निकली नदियां अंत में समुद्र में जाकर मिलती हैं, उसी तरह इंसान अपनी इच्छा के मुताबिक अलग-अलग मार्ग चुनता है.’

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