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क्यों किया जाता है प्रदोष व्रत ? महत्व जान रह जाएंगे हैरान, जानें पूजा की सही विधि

Som Pradosh Vrat 2025 Shiv Parvati Puja Vidhi:हिंदू धर्म में प्रदोष व्रत भगवान शिव और माता पार्वती को समर्पित एक महत्वपूर्ण व्रत है। यह व्रत हर महीने के दोनों पक्षों (कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष) की त्रयोदशी तिथि को रखा जाता है। ‘प्रदोष’ शब्द का अर्थ है सूर्यास्त के बाद का वह समय जब रात […]

Som Pradosh Vrat 2025 Shiv Parvati Puja Vidhi
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  • Last Updated: June 22, 2025 14:57:31 IST

Som Pradosh Vrat 2025 Shiv Parvati Puja Vidhi:हिंदू धर्म में प्रदोष व्रत भगवान शिव और माता पार्वती को समर्पित एक महत्वपूर्ण व्रत है। यह व्रत हर महीने के दोनों पक्षों (कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष) की त्रयोदशी तिथि को रखा जाता है। ‘प्रदोष’ शब्द का अर्थ है सूर्यास्त के बाद का वह समय जब रात और दिन का मिलन होता है। मान्यताओं के अनुसार, यह वह खास समय होता है जब भगवान शिव कैलाश पर्वत पर आनंद तांडव करते हैं और सभी देवी-देवता उनकी स्तुति करते हैं। इसलिए इस समय की गई पूजा बहुत फलदायी मानी जाती है।

व्रत का महत्व

सप्ताह के जिस दिन पड़ता है उसके अनुसार बदलता रहता है। इस बार प्रदोष व्रत सोमवार को पड़ रहा है। इसलिए इसे सोम प्रदोष व्रत कहा जा रहा है। इस व्रत को रखने से चंद्र दोष दूर होता है, मानसिक शांति मिलती है और संतान सुख की प्राप्ति होती है।

पंचांग के अनुसार सोम प्रदोष व्रत के लिए त्रयोदशी तिथि सोमवार, 23 जून को सुबह 07:37 बजे से शुरू होगी और अगले दिन मंगलवार, 24 जून को सुबह 09:33 बजे समाप्त होगी। प्रदोष काल के दौरान पूजा का समय शाम 07:37 बजे से रात 09:33 बजे तक रहेगा। प्रदोष काल सूर्यास्त से लगभग 45 मिनट पहले शुरू होता है और सूर्यास्त के लगभग 45 मिनट बाद तक रहता है। यह वह समय होता है जब शिव और पार्वती बहुत प्रसन्न मुद्रा में होते हैं।

सोम प्रदोष व्रत पूजा विधि

  • प्रदोष व्रत के दिन प्रदोष काल में भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा विशेष फलदायी होती है।
  • सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें। हाथ में जल लेकर संकल्प लें कि पूरे दिन व्रत रखेंगे और प्रदोष काल में शिव-पार्वती की पूजा करें।
  • घर के मंदिर में या शिव मंदिर में शिवलिंग पर जल चढ़ाएं। बेलपत्र, धतूरा, अक्षत, धूप, दीप आदि से सामान्य पूजा करें।
  • पूरे दिन निराहार (बिना कुछ खाए-पीए) रहें। संभव न हो तो फल खा सकते हैं, जिसमें अनाज और नमक का सेवन वर्जित है।
  • पूरे दिन मन में शिव-पार्वती का स्मरण करते रहें। सूर्यास्त से ठीक पहले या प्रदोष काल के आरंभ में एक बार फिर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  • पूजा स्थल को साफ करके गंगाजल से पवित्र करें। उत्तर-पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठें। संभव हो तो गाय के गोबर से मंडप बनाएं और उसे पांच रंगों से रंगोली से सजाएं।
  • भगवान शिव, माता पार्वती, गणेश, कार्तिकेय और नंदी की मूर्ति या चित्र को एक आसन पर स्थापित करें। अगर शिवलिंग है तो उसकी पूजा करें।
  • शिवलिंग पर पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद, गंगाजल) से अभिषेक करें। ‘ॐ नमः शिवाय’ मंत्र का जाप करते रहें।
  • भगवान शिव को बेलपत्र, धतूरा, भांग, सफेद फूल (विशेष रूप से मदार के फूल), शमी पत्र, चंदन और भस्म चढ़ाएं। माता पार्वती को लाल वस्त्र, लाल फूल, सिंदूर, बिंदी और सुहाग की अन्य वस्तुएं चढ़ाएं।

व्रत का पारण (अगले दिन)

द्वादशी तिथि (24 जून) को सूर्योदय के बाद और प्रदोष काल के बाहर प्रदोष व्रत का पारण करें। सुबह स्नान करके भगवान की पूजा करें। ब्राह्मण को भोजन कराएं या दान दें। इसके बाद खुद सात्विक भोजन करके व्रत का पारण करें।

सोम प्रदोष व्रत का महत्व

सोमवार को पड़ने वाला प्रदोष व्रत चंद्र देव को समर्पित है, क्योंकि सोम प्रदोष व्रत करने से कुंडली में चंद्रमा की स्थिति मजबूत होती है और चंद्र दोष से मुक्ति मिलती है, जिससे मानसिक शांति और स्थिरता मिलती है। संतान प्राप्ति के लिए यह व्रत बहुत शुभ माना जाता है। सच्चे मन से इस व्रत को करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। भगवान शिव और माता पार्वती की कृपा से परिवार में सुख, शांति, समृद्धि और अच्छा स्वास्थ्य बना रहता है। यह व्रत सभी प्रकार के रोगों और कष्टों को दूर करने वाला माना जाता है। यह व्रत भगवान शिव और माता पार्वती की कृपा प्राप्त करने का एक अद्भुत अवसर है।

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