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डोकलाम विवाद: इन 5 बड़े कारणों से पीछे हटने को मजबूर हुआ चीन

डोकलाम पर आज चीन को मुंह की खानी पड़ी और हिंदुस्तान को बड़ी कूटनीतिक जीत मिली. 72 दिन बाद चीन को हिंदुस्तान की बात मान कर सेना हटाने पर राजी होना पड़ा. अब भारत के साथ-साथ चीन की सेना भी डोकलाम से पीछे हट रही है.

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  • Last Updated: August 28, 2017 17:27:53 IST
नई दिल्ली: डोकलाम पर आज चीन को मुंह की खानी पड़ी और हिंदुस्तान को बड़ी कूटनीतिक जीत मिली. 72 दिन बाद चीन को हिंदुस्तान की बात मान कर सेना हटाने पर राजी होना पड़ा. अब भारत के साथ-साथ चीन की सेना भी डोकलाम से पीछे हट रही है. चीन के खिलाफ भारत को ये कूटनीतिक जीत चीन में होने वाले ब्रिक्स सम्मेलन से पहले मिली है. ये 5 बड़ी वजह जिसने चीन को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया.
 
दुनिया में पीएम मोदी जहां भी गए वहां हिंदुस्तान का डंका बजा. इस बार पीएम मोदी ब्रिक्स सम्मेलन के लिए चीन जा रहे हैं. उनके वहां पहुंचने से पहले ही डोकलाम का डंका बज चुका है. उम्मीद है जिनपिंग और मोदी के बीच अब काम की बातें हो सकेंगी. चीन भी यही चाहता था. ऐसी ही कुछ खास वजहों से उसने डोकलाम में पीछे हटने का फैसला किया.
 
 
पहली वजह – फंस गए थे शी जिनपिंग 
इस साल के अंत तक चीन की सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी का एक अहम सम्मेलन होने वाला है. पार्टी में एक धड़ा ऐसा है, जो सैन्य हस्तक्षेप के जरिए डोकलाम मुद्दे का हल निकालने की मांग कर रहा था. जिनपिंग को एहसास था कि भारत 62 वाला भारत नहीं है और जंग से चीन का भारी नुकसान होगा. उनकी छवि बनना तो दूर उनकी भद्द पिट जाएगी.
 
 
दूसरी वजह – जंग में भारी तबाही झेलता चीन
डोकलाम में भारत के एक सैनिक का मुकाबला करने के लिए चीन को 9 सैनिकों की जरूरत पड़ती. जानकारों का यहां तक दावा है कि भारत से जंग लड़ने के लिए चीन को 20 लाख सैनिकों को उतारना पड़ता. 
 
 
तीसरी वजह – भारत-भूटान का कड़ा रुख
चीन ने इस बार भारत के साथ-साथ भूटान को आंकने भी में गलती कर दी. भारतीय सैनिक जहां डोकलाम से लेकर पैंगौंग तक चीन को ईंट का जवाब पत्थर से देते रहे. वहीं हिंदुस्तान की ताकत के साथ भूटान भी चीन को अपनी जमीन से निकालने पर डटा रहा.
 
 
चौथी वजह – व्यापार पर बुरा असर पड़ता
2016-17 के आंकड़े को देखें तो चीन ने भारत में 61.3 अरब डॉलर का माल निर्यात किया. जबकि भारत उसे महज 10.2 अरब डॉलर का ही निर्यात कर सका. भारत से जंग लड़ कर चीन इतने भारी मुनाफे वाले व्यापार से हाथ धो बैठता.
 
पांचवीं वजह – दुनिया ने दिया भारत का साथ
विश्व के ज्यादातर देश भारत की तरफ खड़े थे. जापान ने खुलकर भारत का साथ दिया जबकि अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और वियतनाम ने भी भारत के समर्थन के संकेत दिए. दक्षिण चीन सागर मलेशिया, ताइवान, वियतनाम, ब्रुनई से झगड़ा मोल ले चुके चीन की किरकिरी हो रही थी.
 
 
दोनों देशों के तनातनी के बीच चीन की तरफ से बार-बार उकसावे वाले बयान आते रहे. कभी युद्ध की धमकी दी गई तो कभी कश्मीर को लेकर भड़काने वाला बयान सामने आया लेकिन भारत ने कभी संयम नहीं खोया. हाल के दिनों में भारत और चीन ने डोकलाम में हुई घटना को लेकर कूटनीतिक बातचीत जारी रखी है.
 
बातचीत के दौरान, हमने अपने विचार रखते रहे. अपनी चिंता और हितों को जाहिर करते रहे. इस आधार पर डोकलाम में टकराव की जगह से सेना के जवानों को सीमा से जल्द हटाने पर सहमति बनी है और ये काम चल रहा है.
 
मोदी सरकार के लिए ये बड़ी कूटनीतिक जीत है क्योंकि मामले का हल बातचीत से निकालने की पहल भारत ने ही की थी. भारत अपने रुख पर अड़ा रहा. भारत कहता रहा कि गलती चीन की है जो डोकलाम के उस ट्राइ-जंक्शन में घुस आया जहां एक तरफ भारत है तो दूसरी तरफ भूटान. तीसरा पक्ष चीन अब तक चुपचाप बैठा था. लेकिन 16 जून को उसने अचानक सड़क बनाने का काम शुरु कर दिया. उसने भूटान के इलाके में सड़क बनाई और भारत के बंकर तोड़े.
 
 
भूटान ने भारत के जरिए चीन से शिकायत की जिसके बाद भारत ने भूटान की रक्षा के लिए अपनी सेना भेजी. भारत ने साफ कर दिया कि अगर कोई पीछे हटेगा तो चीन. आखिरकार चीन को अक्ल आई और उसने अपनी सेना हटाने का फैसला किया. इस तरह दो महीने से भी अधिक समय तक चला विवाद भारत की जीत के साथ सुलझ गया.

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