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Murli Manohar Joshi Political Career: कभी पीएम नरेंद्र मोदी के लिए 2014 में छोड़ी थी वाराणसी सीट, अब खुद फर्श पर आ गए मुरली मनोहर जोशी, ऐसा रहा राजनीतिक करियर

Murli Manohar Joshi Political Career: भाजपा के दिग्गज नेता मुरली मनोहर जोशी को लोकसभा चुनाव 2019 में भाजपा ने टिकट नहीं दिया है. कानपुर से मुरली मनोहर जोशी ने 2014 में रिकॉर्ड वोट प्राप्त किए थे. 2014 में ही उन्होंने पीएम नरेंद्र मोदी के लिए वाराणसी सीट छोड़ दी थी. पढ़े कैसा रहा उनका राजनीतिक करियर

Murli Manohar Joshi Political Career
inkhbar News
  • Last Updated: March 26, 2019 14:00:22 IST

नई दिल्ली. नाम- मुरली मनोहर जोशी. पार्टी-बीजेपी. कानपुर से सांसद. कद्दावर नेता और संघ प्रचारक. जोशी की पहचान यही रही है. हिंदुत्व सोच रखने वाले मुरली मनोहर जोशी जिस बीजेपी के 1991 से 93 तक अध्यक्ष रहे, उन्हें शायद मालूम नहीं होगा कि 2019 आते-आते उन्हें चुनाव नहीं लड़ने को ही कह दिया जाएगा. जोशी ने कानपुर के मतदाताओं को एक पत्र लिखा है, जिसमें उन्होंने कहा कि बीजेपी चाहती है कि मैं कानपुर ही नहीं, कहीं से भी चुनाव न लड़ूं.

2017 में भारत के दूसरे सबसे बड़े नागरिक सम्मान पद्म विभूषण से नवाजे गए जोशी बीजेपी के उन कद्दावर नेताओं में से एक माने जाते हैं, जिन्होंने बीजेपी की नींव हिलने नहीं दी. 2 सांसद वाली पार्टी 2014 में अगर पूर्ण बहुमत से सत्ता में लौटी तो उसकी जमीन उपजाऊ करने में जोशी का अहम योगदान रहा. हर परिस्थिति में वह अटल बिहारी वाजपेयी, लाल कृष्ण आडवाणी के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े रहे. जब 1998 में भाजपा की गठबंधन सरकार बनी तो उन्हें शित्रा मंत्री बनाया गया.

5 जनवरी 1934 को उत्तराखंड के नैनीताल में जन्मे जोशी ने शुरुआती पढ़ाई चांदपुर, जिला बिजनौर और अल्मोड़ा से की. मेरठ कॉलेज से बीएससी और इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से एमएससी की और इसके बाद पीएचडी. उन्होंने अपना फिजिक्स में रिसर्च पेपर हिंदी में पब्लिश किया था, जो अपने आप में अनोखा था. यहां उनके एक टीचर थे प्रोफेसर राजेंद्र सिंह, जो बाद में आरएसएस संघचालक बन गए. पीएचडी के बाद वह इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में ही पढ़ाने लगे.

जोशी आरएसएस के संपर्क में युवा उम्र में ही आ गए थे. उन्होंने 1953-54 में गो-आंदोलन में हिस्सा लिया था. इसके बाद वह यूपी में 1955 में कुंभ किसान आंदोलन का हिस्सा रहे. उन्होंने आपातकाल के दौरान 26 जून 1975 से लेकर 1977 तक जेल भी काटी. इसके बाद चुनावों में वह अल्मोड़ा से जीते और जब देश की पहली गैर कांग्रेस सरकार जनता पार्टी बनी तो उन्हें जनता संसदीय पार्टी का महासचिव बनाया गया. सरकार गिरने के बाद उन्होंने भारतीय जनता पार्टी बनाई.

बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर, महात्मा ज्योतिबा फुले और दीनदयाल उपाध्याय के विचारों और जीवन से प्रभावित रहे. वह 2004 में इलाहाबाद सीट पर हारने से पहले तीन बार सांसद रहे. इसके बाद वह वाराणसी से जीते. 2014 में उन्होंने पीएम नरेंद्र के लिए वाराणसी की सीट छोड़ी और खुद कानपुर से 2.23 लाख वोटों से चुनाव जीते.

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