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जब पीएम नेहरू के फाइनेंस मिनिस्टर को उनके दामाद के चलते करना पड़ा था रिजाइन

आजाद भारत के पहले फायनेंस मिनिस्टर से प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु इतने नाखुश थे कि दूसरा बजट पेश करते ही उन्होंने उनसे इस्तीफा ही ले लिया जबकि इंदिरा गांधी के पति और उनके दामाद फीरोज गांधी ने देश के चौथे वित्त मंत्री को रिजाइन देने पर मजबूर कर दिया.

Prime minister jawahar lal nehru's finance minister
inkhbar News
  • Last Updated: January 31, 2018 23:02:52 IST

नई दिल्ली. ये वाकई दिलचस्प बात है कि आजाद भारत के पहले फाइनेंस मिनिस्टर से नेहरू इतने नाखुश थे कि दूसरा बजट पेश करते ही उनसे इस्तीफा ले लिया जबकि देश के चौथे फाइनेंस मिनिस्टर को रिजाइन उनके दामाद और इंदिरा गांधी के पति फीरोज गांधी ने इस्तीफा देने पर मजबूर कर दिया. आप फीरोजको रॉबर्ट वाड्रा की इमेज से तोलने की गलती ना करें, पहले समझ लें कि सारा माजरा आखिर था क्या.

 1947 से पहले नेहरू की अंतरिम सरकार में लियाकत अली खान बतौर फाइनेंस मिनिस्टर काम कर रहे थे, उन्हें मुस्लिम लीग ने सरकार में नॉमीनेट किया था. दोनों देशों का बंटवारा और आजादी के बाद लियाकत अली खान पाकिस्तान चले गए और पाक के पहले प्रधानमंत्री बने. जबकि गांधीजी ने आजाद भारत के पहले वित्त मंत्री के लिए वो नाम चुना जो नेहरू को कतई पसंद नहीं था. उस बंदे के बारे में माना जाता था कि उसे अंग्रेजी शासन से कोई समस्या नहीं थी, लेकिन वो फायनेंस के फील्ड में महारथी था. नाम था आर के षनमुखम चेट्टी. कोएम्बटूर में उनके परिवार के पास कई मिलें थीं. इकोनोमिक्स और लॉ की पढ़ाई के बाद चेट्टी ने वकालत करने के बजाय बिजनेस संभाला और राजनीति की राह पकड़ ली. पहले जस्टिस पार्टी और फिर स्वराज पार्टी के जरिए कई चुनाव जीते और अंग्रेजों से नजदीकी के चलते कई देशों में इकोनोमी और पॉलटिकल सिस्टम पर कई कॉन्फ्रेंसों में हिस्सा लिया. बीच में वो कोचीन के दीवान भी रहे.

 वो सेंट्रल असेम्बली के प्रेसीडेंट भी रहे. गांधी जी की सिफारिश पर नेहरू ने उन्हें फायनेंस मिनिस्टर बना तो लिया, दो बजट पेश भी करने दिए लेकिन खुश नहीं रहे. पहला बजट चेट्टी ने 26 नवंबर 1947 को पेश किया, जो 15 अगस्त 1947 से 31 मार्च 1948 तक के लिए ही था यानी केवल साढे सात महीने. लेकिन दूसरे बजट के बाद उनसे इस्तीफा ले लिया गया और वो अपने स्टेट की राजनीति में वापस लौट गए. फिर साउथ के ही जॉन मथाई जो भारत के पहले रेल मंत्री थे, उनको वित्त मंत्रालय की कमान सौंप दी गई. उन्होंने भी दो बजट पेश किए, लेकिन 1950 में उन्होंने प्लानिंग कमीशन को ज्यादा ताकत दिए जाने के चलते इस्तीफा दे दिया था. तब तीसरे वित्त मंत्री बनाए गए सीडी देशमुख, जो प्लानिंग कमीशन के सदस्य़ भी थे. जो पहले आरबीआई के गर्वनर रह चुके थे, सिविल सर्वेंट चुने गए थे, उनके वक्त में ही पहली पंचवर्षीय योजना लाई गई.

 लेकिन नेहरू के चौथे फायनेंस मिनिस्टर को उनके दामाद फीरोज गांधी के चलते इस्तीफा देना पड़ा था. दरअसल माना जाता है कि स्वतंत्र भारत का ये पहला कॉरेपोरेट स्कैम था, जिसे उजागर किया था नेहरू के दामाद ने और बतौर रायबरेली से सांसद जमकर संसद में दवाब बनाया और उस स्कैम में तत्तकालीन वित्त मंत्री टीटी कृष्णामचारी का हाथ होने का आरोप लगाकर उन्हें इस्तीफा देने पर मजबूर कर दिया. आज सोनिया के दामाद रॉबर्ट वाड्रा की इमेज इसके ठीक उलट बन गई है. ये आरोप मुंद्रा स्कैम के तहत लगाए गए.

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हरिदास मुंद्रा कोलकाता का बिजनेसमैन था, शुरूआत उसने नाइट बल्ब बनाने से की थी. लेकिन वो तेजी से अमीर बनना चाहता था, एक बार उसे बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज में भी गड़बड़ी का दोषी पाया गया था. उन्हीं दिनों एलआईसी का सरकार ने नेशनलाइजेशन कर दिया था, अगले ही साल यानी 1957 में एलआईसी ने मुंद्रा की घाटे में चल रही 6 कंपनियों के शेयर जब सवा करोड़ से ज्यादा में खरीदे और बजट के बाद इन कंपनियों के शेयर जिस तेजी से गिरे उससे एलआईसी को बड़ा नुकसान हुआ तो फीरोज गांधी ने इसे मुद्दा बना लिया. शेयर्स भी बाजार भाव से ज्यादा दरों पर खरीदे गए थे, टीटी कृष्णामचारी को आखिर में इस्तीफा देना ही पड़ गया.

कुछ दिन वित्त मंत्रालय का प्रभार नेहरू के पास ही रहा, लेकिन बाद में मोरारजी देसाई को दे दिया गया. हालांकि बाद में छागला कमीशन की जांच में वित्त मंत्री पर शक ही किया गया, उन पर कोई एक्शन नहीं लिया गया, मुंद्रा को जेल भेज दिया गया. 1960 में फीरोज गांधी की मौत के बाद 1962 में नेहरू ने उन्हें अपनी केबिनेट में वापस ले लिया, हालांकि वित्त मंत्रालय नहीं दिया गया. बाद में 1964 से 1966 तक वो फिर वित्त मंत्री रहे. 

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