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लाभ पंचमी 2017 : लाभ पंचमी का महत्व, व्यापारियों के लिए खास है ये दिन

लाभ पंचमी 2017 को भारत में दिवाली के अंतिम त्योहार के रूप में मनाया जाता है. कार्तिक शुक्ल पक्ष पंचमी को सौभाग्य पंचमी के नाम से भी जाना जाता है. आज हम आपको लाभ पंचमी महत्व और लाभ पंचमी पूजा विधि के बारे में बताएंगे.

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  • Last Updated: October 24, 2017 07:10:47 IST
नई दिल्ली : लाभ पंचमी 2017 को भारत में दिवाली के अंतिम त्योहार के रूप में मनाया जाता है. लाभ पंचमी को लाभ पाचम के नाम से भी जाना जाता है. शायद आप इस बात से अंजान होंगे कि कार्तिक शुक्ल पक्ष पंचमी को सौभाग्य पंचमी के नाम से भी जाना जाता है. दिवाली के बाद भी त्योहारों का सिलसिला जारी है. वैसे तो भारत में कई ऐसे राज्य हैं जहां इस पर्व को मनाया जाता है लेकिन गुजरात में विशेष पूजा होती है जिसका नाम है लाभ पंचमी. आप लोगों की जानकारी के लिए बता दें कि कार्तिक शुक्ल पंचमी को सौभाग्य पंचमी व लाभ पंचमी के रूप में देशभर में मनाया जाता है.
 
गुजरात में ये शुभ दिन दीप पर्व का हिस्सा है. दिवाली 2017 से कारोबारियों के लिए नव वर्ष की शुरुआत होती है लेकिन साथ ही लाभ पंचमी पर्व को कारोबार में तरक्की और शुरुआत के लिए बेहद शुभ माना गया है. आपके जहन में ये सवाल घूम रहा होगा कि दीप पर्व का क्या महत्व है तो बता दें कि दीप पर्व सुख-शांति और खुशहाल जीवन रो भरपूर ऊर्जा और प्रेरणा लेने का शुभ अवसर है. 
 
लाभ पंचमी का पर्व व्यापारियों और व्यवसायिों के लिए बेहद शुभ माना जाता है. ऐसा कहा जाता है कि इस दिन भगवान की पूजा-आराधना से व्यापारियों और उनके परिजनों के जीवन में फायदा और अच्छी किस्मत आती है. बता दें कि लाभ पंचमी पर दीपावली पर पूजा के बाद बहीखातों में लिखने की शुरुआत शुभ व लाभ की कामना के साथ भगवान गणेश की आराधना की जाती है.
 
लाभ पंचमी से व्यापार की शुरुआत 
 
गुजरात में व्यापारी लाभ पंचमी के दिन से अपने व्यापार की शुरुआत करते हैं, दिवाली के अगले दिन गुजराती नववर्ष मनाते हैं. इस दिन से सभी व्यापारी 5 दिनों की छुट्टी पर चले जाते हैं और लाभ पंचमी से एक बार फिर कारोबार की शुरुआत करते हैं. एक बार फिर काम-काज नए बहीखाते में शुरू किया जाता जिसके बाईं और ‘शुभ’ और दाईं तरफ ‘लाभ’ लिखा जाता है. 
 
सौभाग्य पंचमी पूजा विधि
 
इस दिन प्रात : जल्दी उठकर स्नान इत्यादि से निवृत होकर सूर्य को जलाभिषेक करें, इसके बाद शुभ मुहूर्त में भगवान शिव व गणेश जी की प्रतिमाओं को स्थापित किया जाता है. श्री गणेश जी को सुपारी पर मौली लपेटकर चावल के अष्टदल पर विराजित किया जाता है. भगवान गणेश जी की पूजा करते समय पूजी थाली में चंदन, सिंदूर, अक्षत, फूल, दूर्वा से पूजना चाहिए तथा भगवान आशुतोष को भस्म, बिल्वपत्र, धतुरा, सफेद वस्त्र अर्पित कर पूजन किया जाता है. पूजा करने के बाद श्री गणेश को मोदक व शिवजी को दूध से बने सफेद पकवानों का भोग लगाया जाता है.  सौभाग्य पंचमी पर विशेष मंत्र का जाप कर भगवान श्री गणेश का आवाहन करते हैं, इस दिन गणेश के साथ भगवान शिव का स्मरण शुभफलदायी होता है. सौभगय पंचमी व्रत करने से सभी इच्छाएं पूर्ण होती है. 
 

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