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Shardiya Navratri 2019: नवरात्र के नौवें दिन मां दुर्गा के सिद्धिदात्री स्वरूप की होती है आराधना, जानें पूजा विधि, मुहूर्त, मंत्र समेत पूरी जानकारी

Shardiya Navratri 2019: शारदीय नवरात्र पूरे भारत में मनाई जा रही है. माता रानी के भक्तजन नवरात्र के 9 दिनों तक अपने घरों में जागरण का आयोजन करते हैं. नवरात्र के नौवें दिन दुर्गा माता की नौवीं शक्ति देवी सिद्धिदात्री की पूजा होती है. इनकी पूजा करने से भक्त को सभी सिद्धियों की प्राप्ति होती है.

Shardiya Navratri 2019
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  • Last Updated: October 1, 2019 15:59:46 IST

नई दिल्ली. मां दुर्गा की नौवीं शक्ति का नाम सिद्धिदात्री है. शारदीय नवरात्रि में नौवें दिन सिद्धयों की देवी सिद्धदात्री की उपासना का जाती है. इस दिन शास्त्रीय विधि-विधान के साथ और पूर्ण निष्ठा के साथ साधन करने वाले साधक को सभी सिद्धियों की प्राप्ति हो जाती है. मां सिद्धदात्री भक्तों और साधकों को सारे सिद्धिया देने में सक्षम हैं. देवी पुराण के अनुसार भगवान शिव ने इनकी कृपा से ही सारे सिद्धियों को प्राप्त किया था. जो मनुष्य मां सिद्धिदात्री की कृपा चाहते हैं तो उन्हें लगातार प्रयास करते रहना चाहिए. जिससे सारे सुख की प्राप्ति होगी. मार्कण्डेय पुराण के अनुसार अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकीम्य, ईशित्व और वशित्व- ये आठ सिद्धिया होती हैं.

मां सिद्धिदात्री की स्वरूप का वर्णन : माता सिद्धदात्री चार भुजाओं वाली हैं. इनका वाहन सिंह है. ये कमल पुष्प पर आसीन हैं. इनकी दाहिनी नीचे वाली भुजा में चक्र, ऊपर वाली भुजा में गदा और बायीं तरफ नीचे वाले हाथ में कमल पुष्प है.

मां की आराधना के लिए इस श्लोक की कंठस्थ कर नवरात्रि में नवमी के दिन जाप करें.

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ सिद्धिदात्री रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।

भगवती सिद्धिदात्री का ध्यान, स्तोत्र और कवच का पाठ करने से ‘निर्वाण चक्र’ जाग्रत हो जाता है.

ध्यान
करालवंदना धोरां मुक्तकेशी चतुर्भुजाम्।
कालरात्रिं करालिंका दिव्यां विद्युतमाला विभूषिताम॥
दिव्यं लौहवज्र खड्ग वामोघोर्ध्व कराम्बुजाम्।
अभयं वरदां चैव दक्षिणोध्वाघः पार्णिकाम् मम॥
महामेघ प्रभां श्यामां तक्षा चैव गर्दभारूढ़ा।
घोरदंश कारालास्यां पीनोन्नत पयोधराम्॥
सुख पप्रसन्न वदना स्मेरान्न सरोरूहाम्।
एवं सचियन्तयेत् कालरात्रिं सर्वकाम् समृध्दिदाम्॥

स्तोत्र पाठ
ह्रीं कालरात्रि श्रींं कराली च क्लीं कल्याणी कलावती।
कालमाता कलिदर्पध्नी कमदीश कुपान्विता॥
कामबीजजपान्दा कामबीजस्वरूपिणी।
कुमतिघ्नी कुलीनर्तिनाशिनी कुल कामिनी॥
क्लीं ह्रीं श्रीं मन्त्र्वर्णेन कालकण्टकघातिनी।
कृपामयी कृपाधारा कृपापारा कृपागमा॥

कवच
ऊँ क्लीं मे हृदयं पातु पादौ श्रीकालरात्रि।
ललाटे सततं पातु तुष्टग्रह निवारिणी॥
रसनां पातु कौमारी, भैरवी चक्षुषोर्भम।
कटौ पृष्ठे महेशानी, कर्णोशंकरभामिनी॥
वर्जितानी तु स्थानाभि यानि च कवचेन हि।
तानि सर्वाणि मे देवीसततंपातु स्तम्भिनी॥

 

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