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जम्मू-कश्मीर: प्रदर्शन में पहुंचाया संपत्ति को नुकसान तो जुर्माने के साथ 5 साल की जेल!

जम्मू-कश्मीर सरकार अब प्रदर्शनकारियों से सख्ती से निपटने के मूड में नजर आ रही है. जम्मू और कश्मीर के राज्यपाल एनएन वोहरा ने राज्य सरकार के उस अध्यादेश को मंजूरी दे दी है, जिसके अनुसार हड़ताल या प्रदर्शन के दौरान सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने पर उसकी भरपाई प्रदर्शनकारियों से ही की जाएगी. इतना ही नहीं, प्रदर्शनकारियों को जुर्माने के साथ-साथ 5 साल की सजा भी हो सकती है.

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  • Last Updated: October 27, 2017 16:54:48 IST
श्रीनगरः जम्मू-कश्मीर सरकार अब प्रदर्शनकारियों से सख्ती से निपटने के मूड में नजर आ रही है. जम्मू और कश्मीर के राज्यपाल एनएन वोहरा ने राज्य सरकार के उस अध्यादेश को मंजूरी दे दी है, जिसके अनुसार हड़ताल या प्रदर्शन के दौरान सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने पर उसकी भरपाई प्रदर्शनकारियों से ही की जाएगी. इतना ही नहीं, प्रदर्शनकारियों को जुर्माने के साथ-साथ 5 साल की सजा भी हो सकती है.
 
जम्मू-कश्मीर में आए दिन हिंसक प्रदर्शनों की वजह से सार्वजनिक संपत्तियों को काफी नुकसान पहुंचता है. मुफ्ती सरकार ने अब इसका तोड़ ढूंढ निकाला है. जम्मू और कश्मीर पब्लिक प्रॉपर्टी (प्रिवेंशन ऑफ डैमेज) (अमेंडमेंट) ऑर्डिनेंस, 2017 के तहत सार्वजनिक संपत्तियों के नुकसान से जुड़े कानून में बदलाव किया गया है. आधिकारिक प्रवक्ता ने बताया कि अब सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने पर उसकी भरपाई प्रदर्शनकारियों से ही की जाएगी. इसके साथ ही प्रदर्शनकारियों को 5 साल की जेल भी हो सकती है. यह अध्यादेश तत्काल प्रभाव से लागू हो चुका है.
 
प्रवक्ता ने कहा, दोषी पर संपत्ति को पहुंचे नुकसान के बाजार मूल्य के बराबर जुर्माना लगाया जाएगा. प्रवक्ता ने आगे कहा, इस अध्यादेश को दो मकसद से लाया गया है. पहला, सार्वजनिक और निजी संपत्तियों को नुकसान पहुंचाना दंडनीय होगा और दूसरा ऐसे अपराधों को अंजाम देने वाले अथवा उकसाने वाले अब सीधे तौर पर अपराध के जिम्मेदार होंगे. प्रवक्ता ने बताया, अभी राज्य विधानसभा का सत्र नहीं चल रहा है इसलिए मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती की सिफारिश पर राज्यपाल ने जम्मू-कश्मीर के संविधान की धारा-91 के तहत अध्यादेश को लागू किया है.
 
गौरतलब है कि जम्मू-कश्मीर में इससे पहले के कानून में सरकारी संपत्ति के नुकसान पर किसी भी तरह की कार्रवाई का प्रावधान नहीं था. मौजूदा कानून में सुधार का फैसला सुप्रीम कोर्ट के एक निर्देश को लागू करने के लिए किया गया है. साथ ही प्रदर्शनकारियों पर नकेल कसने के लिए यह अध्यादेश बेहद जरूरी था.
 

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